पुत्री को माता का उपदेश | Putriko Mataka Updesh
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
52
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about मूलचंद किसनदास कपाडिया -Moolchand Kisandas Kapadiya
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(19)
ड) दे खी! तू मेरे कुलका भूषण बन कर मेरे तन, घन
तथा ननेकी परी पूरी सम्हार रखना । ये शिक्षाएं ( नो आम
में तुझे दे रद्द हैं) तृ कभी मत भूलना। इसी में तेरा कल्याण
व श्रेय है और इस्तीस तू सुखकों व यशको प्राप्त होगी |
(२६) बेट। ! हस प्रार् ल्म समय तुझे तेरे पति द्वारा
शिक्षाएं हुई हैं, उनको तू भरे प्रकार पठान करना, जिससे
तुझे सुख मिले और दनां कुरु इद्ध तथा यश्को प्राप्त होकर
प॒स्ारमं आदश रूप हों ।
(२७) बेटी ! तू बड़ोंकी आज्ञा पाऊ़न करना, और छोटों
पर प्रेम रखना । कहा है |-“गुरुजनको भक्तो सदा अर छोटों
पर प्रेम, सम वय लख आदर उचित, करो, नित्राहों नेम ” |
किसीपे इर्षा नहीं करना । नोकरों १र माताके समान क्षमा और
प्रेम रखना । अपने पिता अथवा समुरका सम्पत्तिका मान नहीं
करना और न उनही गरीबीमें कमी पवना | उत्तम पुरुष
सम्पते विपत्तिमं सदा एक ही भांति समुद्रके समान गंभीर
रहते हैं, वे कमी मय'दा नहीं छोड़ते ॥
(२८) पर्म, न ति व सत्य दिते.परेशकी प्ुस्तकक না.
ध्याय तू अवश्य टी अवकाशानुसार करते रहता, परंतु दंत-
कथाओं व आंगररसते भरी हुईं पुए्तकाकी कभी हाथ भी नहीं
लगाना मैर् न नाट अटि, मनप विगाड़नेवाड़े खेलोंकों कभी
देखने घुनने+) ३च5 रखना । परंतु हां ! ईश्वर मफे वे नीकि
এসি 2
= ५, ५६ =. ৬
तथा धमे मीक नि उथा गुनने में हानि नहीं है। इस-
User Reviews
No Reviews | Add Yours...