श्री रामचरितमानस | Shri Ramcharit Manas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रह मी -श्प्ति मात्र छर्थोत्तू निर्षिशिप- तय फिंफर ते रायरो शम दीं रहिदीं। येदि ज्ञान-रवरूप दि । नाते नरवद सचु पददों या पिन परमपदहु दुप दद्दिदा ॥” (पिन १४११--अयात, परम पद (मोद्ष) में भी फिक्वरनभाव से ही रहूँगा । इसके थिना ( छुप्क शान फो फैघलय-मुक्ति ) मेरे लिये दुःखद एवं दादक है, इत्यादि ! उपयुक्त प्रसद्लों से रपष्ट दो गया कि श्रीगोरवामी घी का भभीएट फेचलाईस-सिद्धान्त नहीं दै, किन्तु समन्यय ( विशिष्टादव ) सिद्धान्त दे ! ः समन्वय सिद्धान्त में तर्दश्रय ( चित्‌-चित्त- ईश्वर ) की व्यवस्था दै, यया-ू 'सवौज्ीये सर्वेसंस्थे शदन्ते तामिन्दं सो म्यते पदक । प्रथगास्मान मे रितार व सत्सां जुट्टस्ततस्तेनाइतत्वसेति ॥”” (श्वे० 11५)--अथोत्‌ू समस्त प्राणियों के जीवन के देतु-भूत, सपकी स्थिति के पक मात्र आधार, पहुत ये न्रह्चक्र में इंस (इन्ति मच्छती ति हंस) न जीच न्रमण करता रदता दै। अमणु करानियाल। ( प्रेरक » परमात्मा है और घ्रमण करनेवाला मैं उप्तका शेष ( सेवक ) हैँ, शरीस्-भूत हूँ-इस प्रकार अपनेकी दथकू मानकर जम शी ध्यान करता है, तब भगवान्‌ की असन्नता से बह सुक्ति पाता है। इसी भाव की मीौर भी श्रुतियाँ हैं; यया--“प्रधानत्तेत्रश्पति्गुशिरा: ।” (रन इा५९ ) ; “सोका भोर्ग्य प्रेरितारं च मत्वा से प्रोक्त॑ श्रिविध॑ अहम चैतत्‌।” (स्वेन ५11९ ) ; “संयुक्तमेतत्तारमच्षरं 'च॒व्यक्ताव्यक्त भरते विश्वमीशः “चार प्रधान- अमताह्रं दर: ्रात्मानायीशते देव एक: ।” (इवे+ 1४-1० ) 1. इन झुतियों में रपट रूप से चिद्चित्‌ ( जीव और प्रकृति ) का प्रेरक ( स्वामी ) श्रद्द फद्दा गया दे 1 शीनारद-पश्चराव मैं भगवान्‌ ने श्रीयुय से तत््वन्रय के बल किये हैं. सीता में भी इसी तरद के सम्बन्ध सदित तीनों तत्वों के चर्णन किये गये हैं ; यथा-“भूमि- रापोघननो घायुः खें सनो घुद्धिरिच च । अददड्वार इती्यं मे भिन्ता कतिस्घा ॥ 'पपरेयमि- तस्वन्यां प्रकृति विद्धि से परामू । जीवमूर्ता मद्दाबादों ययेदं॑'थायेते जगत, एतद्योनीनि भूतानि सवोजीत्युपघारय । स्ू कूटरनरय लगतः प्रमवर प्लयस्तथा ॥”” हू रन कै | सच्वघ्रय का वैसा ही बर्सन श्रीगीरडामीजी ने भी किया दै, यदद इस श्रीरासच रितत मानस के छनुबंघ 'घतुष्य से दी स्पष्ट दो जाता है. । ब्सुबन्ध चतुष्टय (१) बिपय, (९) सम्दन्घ, (३) अधिकारी सौर (४१ प्रयोजन -थे जद हैं ।




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