बाल काण्ड श्री रामचरित मानस | Bal Kand shri Ram Charit Manas

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Bal Kand  shri Ram Charit Manas by श्रीमती गायत्री देवी - Srimati Gayatri Devi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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13 । वन्दे विशुद्ध विज्ञान फदीशवरफपीइवरी ।। '४ ॥ झाब्दार्थ “--युणग्राम > गुणों के समूह, विधुद्ध विज्ञानी * वियुद्ध ज्ञान से युक्त, कवीव्चर वाल्मीकि, कणीरवर हृतुमात । व्यायपा --जो श्री सीता घर राम के गुण समूह रपी पवित वन में बिहार करने वाले हूं, अर्थात्‌ सीता भीर राम के गुणों मे सदा भनुरवत रत्ते हैं, जो विशुद्ध घान युक्त है, इत्त प्रकार के कवीश्वर वात्मीकि तथा पपीर्वर श्री हुतुमान को मैं प्रणाम करता हूँ । उद्भवह्पितिसहारफारिणी प्तेराद्वारिणीम । सर्वश्रेयरकरीं त्तोतां रामपत्तभाग्‌ ॥ ५ ॥ पराप्दार्य --उद्भव- उत्त्ति, र्पित्ति न पालन, थे यरकरी न ला फरने वाली, रामवल्दभा सीता को । प्यारया :--जो सीताजी उस समार की उत्पत्ति, पालन और स्हार सारने वाली हू, तथा दु तो को नप्ट करने वालो और मंघरर्ण बत्यापों की परने ८ बाली है, उन्दूं में ( तुललीदास ) प्रणाम करता हूं । दिद्दमधिं, ब्रह्मादिदेवासुरा यासत्यादमृपेद भाति सपा रज्जो ययाहिश्षम 1 ग्रस्पादर्तयमेव मेवे हि भयाम्भोषे रितितीपॉप्िता पम्प तमशेपरारणपर हुरिमु ॥ ६ ॥




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