भोजपुरी के कवि और काव्य | Bhojpuri Ke Kavi Or Kavya
श्रेणी : काव्य / Poetry, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
416
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्री दुर्गाशंकर प्रसाद सिंह - Shri Durga Shankar Prasad Singh
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सम्पादक का मन्तव्य &
कतलो पहिरो ए ऊधो, कतलें समुझों गुनवा,
सोने के सिंघोरवा ए् रासा, ल्लागि गइले घुनवा ॥६॥
मोरा लेखे आहो ए ऊधो, दिनवा भइले रतिया,
मोरा लेखे आहो ए ऊधो, जझुना सइल्ली मयावनि ॥१०॥
अनि विद्यापति रामा, सुनहँ ब्रजनारी
घिरजा धरहु ए राधा, मितिं सुरारी ॥११॥
लेखक ने भोजपुरी-प्रदेश में विद्यापति के नाम से प्रचलित “विदापत*-राग का भी
उल्लेख किया है।
मैथिली और भोजपुरी की कई विभक्तियोँ और क्रिया-पद् समान हैं। इसलिए थोड़े
अन्तर के साथ एक गीत का रुपान्तर दूसरी भाषा में सहज ही संभव है।
पं० रामनरेश त्रिपाठी ने भी अपनी 'कविता-कौमु्दा', भाग--१ में विद्यापति कौ
एक व्यंग्योक्ति तथा एक बारहमासा उद्धृत किया है, जिंसकी भाषा बहुत-कुछ अंशों में
भोजपुरी है। निपाठीजी ने स्वयं उसे हिन्दी-मिश्रित भापा कहा है। उनके बारहमासे
की कुछ पंक्तियों यहाँ उद्धुत की जा रही हैं --
कुआर मास बन बोलेला सोर,
आड आड गोरिया बलसुश्रा तोर,
अइल्ते बलसुआ पुजली आस,
पूरल “बिद्यापतिः बारह লাল।
माँ ना झूलबि दो ।
सूरदास--
इस संबंध में सुके अपने बचपन की एक बात याद आती है। सन्ध्या-काल में
खेल-कूद के बाद बाहर से घर সান में हमलोगों की जब देर हो जाती थी, तब अक्सर
श्रोगन मेँ मेरे पितामह की बूढ़ी माता सूरदासजी का यह भजन गाने लगती थीं--
सौ भद्ल घरे ना अइले कन्ह॒हया ।
यह सूरदासजी के भजन का भोजपुरी-रूप है। इसमे नाममात्र का परिवर्तन
कर देने से इसका व्रनभाषा-रूप प्रस्तुत हो जायगा।
लेखक ने भोजपुरी-प्रदेश के चमारों, मुसहरों आदि पिछुड़ी जातियों में प्रचलित
सूर के कई गौत प्राप्त किये हैं, जिनकी भाषा आशद्योपान्त भोजपुरी है। उदाहरण--
काहे ना ग्रभ्नुता करीं ए हरी जी काहें ना प्रसुता करी,
जइसे पतंग दीपक में इसे पाष्े केपगुना घरे,
ओइसे के सूरमा रन में हुलसे, पाछे के पगु ना घरे ॥
प् नाथ जी काहे ना०
कृष्ण के पाती लिखत रुकुमिनी, बिप्र के हाथ धरे
झब जनि बिर्तेम करी হ प्रभु जी, गदर चढ़ि रडरा धाईं ॥
एु नाथ जी काहे ना०
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