सद्धर्म मण्डनम | Saddharm Mandanam

Sadharm Mandanam by आचार्य श्री जवाहर - Acharya Shri Jawahar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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क्रिया करं भजञान के कारण उसकी क्रिया कभी भी पवित्रता का कारण नहीं हो सकती । जन आगम में भी इस प्रकार का उल्लेख मिलता है--- जेयाअबुद्धा महाभागा वीरा प्रम्ममत्त दंसिणों । असुद्ध तेति परक्‍्कत सफल होई सब्बसों ॥ जेयबुद्धा महाभागा वीरा सम्मत दसिणो | सुद्ध तेसि परक्कत भ्रफल होई सव्वसो ॥ पृयगडाग सूत्र, श्र्‌. ३, श्र €, गाथा २२-२३ अर्थ-- जो असम्यग्‌दृष्टि और अज्ञानी है, वह भले ही जगत में महाभाग, पूजनीय एवन महान वीरयोद्धा समभा जाता हो, परन्तु उसकी समस्त क्रियाएं अशुद्ध, अपवित्रं एग ससार को बढाने वाती होती है । जो सम्यरदृष्टि और ज्ञानी ह, उस महाभाग एन वीर पुरुष को दातं तप अध्ययन, स्वाघ्याय जादि समी पारलौकिकं क्रियाएु शुद्ध, पवित्र एग मोक्ष का फल देने वाली है । इससे यह स्पष्ट हो जाता है शि मुत का साना ज्ञान है, अज्ञान नहीं । बौद्ध ददन ने भी मुक्ति के आठ अग माने है १ सम्यददष्टि, २ सम्यक्‌ सकल्प, ३ सम्यक्‌ वचन, ४ सम्यक्‌ कर्म, ५, सम्यक्‌ आजी- विका, ६ सम्यक्‌ व्यवसाय, ७ सम्यक्‌ स्मृति ओौर ८ सम्यक्‌ समाधि । यहा सम्यक्‌ दृष्टि का अर्थ दुख, दुख के हेतु, और उसे दूर करने के भार्ग को सम्यक्तया जनना बताया है । ' सम्यश्टष्टिः, सम्पक्‌ सक्त्प., सम्थकूषाक्‌, सम्यक्‌ कर्मान्त , सम्पा जोव:, सम्यक्‌ व्यवप्षाय:, सम्यक्‌: स्मृतिः, सम्यक्‌ समाधिश्च । तत्र सम्यग्हष्ट टल, तद्ध तु तत्निषे मार्गाणा यथातथ्येन হ্হীলমূ “ । तत्वसग्रह प्रकरण पृष्ठ ५, यहा सम्यर्दशन को सर्वप्रथम स्थान दिया है और सम्यक्चारित्र को चौथा क्योकि सम्यकूदशंन के बिना सम्यक्चारित्र नही होता । चासि तो क्या, सम्यक्‌ सक्त्य भी गही हो सकता । अस्तु सम्यग्दर्शन के बाद ही सम्यकूसकतल्प एव मोक्ष- प्राप्ति की प्रबल इच्छा होती है । न्यायदर्शन मे मोक्ष-प्राप्ति के लिए सर्वप्रथम सम्यस्ज्ञान को आवश्यक भाना है। क्योकि सम्यज्ञान के बिना अज्ञान का नाश नही होता ओर अज्ञान का नाश हृए बिना सासारिकं सुखो का अनुराग नष्ट नही होता गौर शसक विना मोक्ष की प्रप्ति नही होती । इसलिए गौतम मुनि ने स्पष्ट शब्दों मे कहा-- सर्वप्रथम मिथ्याज्ञान का नाश होना आवश्यक है । क्योकि उसका नान होने पर रागादि दोषों का नान्न होगा । दोषो का नादा होने पर प्रवृति का नाश होगा । प्रवृति के हैं...




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