आध्यात्मिक आलोक | Adhyatmik Alok
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
22 MB
कुल पष्ठ :
444
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)| [ও
' महाम्रुनि स्थुलभद्र ने इस सत्य को अपने साधना-जीवन मे चरितार्थं
कर दिया और बता दिया कि साधना में, यदि वह जीवन का श्रमिन ग्रङ्धबन
. जाए और सावक.का ग्रन्तरतर उससे प्रभावित हो तो । क्या शक्ति है। वेश्या
. के विलास एवं श्यू गार की सभी सामग्री से सुसज्जित सदन में रहकर आ्रात्मबन
के द्वारा उस महामुनि ने वह साधना की जिसमें न. केवल स्वयं का उद्धार किया
वरन् वेद्या का भी उद्धार होगया । स्थूलमद्र ने वेशया से कहा-भद्र } भोग
की आग बड़ी विलक्षण होती है। इस आग में जो अपने जीवन को आहुति.
देता है, वह एक बार नहीं, श्रनैक बार-श्रनन्त बार मौत के विकराल मूख में
प्रवेश करता है। अ्रज्ञानी मनुष्य मायता है कि में भोग भोग कर दृप्ति प्राप्त कर
लू गा मगर उस अभाग को अवठृप्ति, असन्तुष्टि और पश्चात्ताप के सिवाय प्रच्य
. कुछ हाथ नहीं लगता ।
, महासनि ने रूपकोशा को समकाया--कोशे ! संसार में एक मार्ग
दिखाई तो अ्रच्छा देता है मगर प्रश्नु उससे दूर होते हैं । जिस मागं से सगवान्
के निकट पहुँचा जा सकता है, सुझे वही मागं प्रिय है ।”
हिसा भूठ कुशील कर्म से, प्रभु होता है दूर ।
दया सत्य समभाव जहां है; रहते वहां हुज्र ॥॥
एक कवि ने ठीक ही कहा है--
लघुता से प्रभुता मिले, प्रभुता से प्रभु दूर ।
जो लघुता धारण करो, प्रभुता होत हुजूर ॥
मृनि ने रूपाकोा से कहा--जो प्रभुता का अहंकार करता है, अपने
को सर्व-समर्थ समझ कर दूसरों की अवहेलना करता है उससे प्रभु दूर होते है ।
किन्तु जो महान् होकर भी अपने को लघु समभता है, जो श्रच्तरंग और बाह्य
: उवाधियों का परित्याग करके लघु बन जाता है, जो अत्यल्प साध॑नों से ही
अपना जीवन शान्तियर्वक यापनर. करता हैं, उसे प्रभुता और प्रश्च॒ु दोनों मिलते
है! ज्यो-ज्यों जीवन मे लघुता एवे निर्मलता आएंगी, उतना ही प्रथु के निकट
तू जाएगी ।
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