भाषाविज्ञानं और हिंदी | Bhashavigyan Aur Hindi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
266
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भाला एव भावित ३
न है जिक्तको हन पाद्मिविक रूप में घातु-सिद्धान्त कह सकते हैं। सस्कृत
सेयाकरणों ने यह सिद्ध करके दिखला दिया है कि सस्क्ृत भाषा का प्रत्येक शब्द
किसी ने किसी सल्कृतनवातु पर आषारित है। इस प्रय्य के श्रमाण में एसी
जहुते सी १1तुए बताई जा सकती हैं, जो अस्येक जरुप-अरभ सर्क्ृत के शताधिक
सशन्दा में अपना अर्व॑-सपय रखती है। जसे ससकृत पत्' धातु पर गाधारित
9 हिन्दी-शण्द इस अकार हैं. पार, वत्ति, पतन, पतय, पत पतल।,
तरी जदि)
परन्तु इसक। अर्थ यह नही है कि भाषा के आरम में केव७ चापुए ही रही
होगी। आदि माषानाषी छोग चातुएु बोलकर ही अपना कार्थ चलाते होगे।
इस सिद्धात के भावनेवों का यह कयन तो वितर्तं ह्।६५।६५प हौ कि अ। दि
पुरुष में बातु-निर्माण की भरति रही होगी, जो कादान्तर मे क्षीण होती भई।
डस अकार क। अनुमान साप। की देवी उत्पत्ति के सदुर्श ही कहो जायेगा। निस्स-
'देहू आदि पुरुषों के भीतर इस अकार को घातु निर्माण करने को शक्ति का अनु-
च्यान कर छेचा इस वुद्धिवादी युग भें जेबविश्वासभाव कहा जोथेगा । इसमे सरेह
नहीं कि मेधुतिक युथ में वेश्धानिक पे।रिमिपिक शन्दावझी के छिए हम ५तुओ
-न। अविक भाना।र लेते हैं, परचचु माप। को अरुसिक अवस्य। में यही तकसपत
जान पडता है कि बातुए भाषा में युक्त बहुत से शेण्दो के विश्लेषण के हारा
साएूम की गई। दूसरे, सर को सभी भाषानों पर घातु-सिद्धाप घटित भी चही
खोता। अतएव भाष। की उत्पत्ति के सम्बन्ध में उक्त मत मोन््य चही हो सकता ।
भी माष।सिन्यथजक (10050006005 ) ওনব। লী প)৭।খ १९ भाषा
की उत्पत्ति को सिद्ध करने का अवास कियो गया है। ये श०न्द भपुण्य के स्वभाव
से प्रस्ति होते हैं और क्षमी देशों में इनक। अवोग पाया जति। है, किन्तु उचका
लप मिन्त-मिक्र है। कोष, भय; आश्चर्य, श्रेम आदि की अवस्यामी भे ये
नायात सुख से निकल पड्ते हैं। भोह, গা, वाह, ৭ জী জী; তিন जा्दि
एव ही शब्द हैं। ये मचोमावषासिन्यणक शब्द स्वोभाविक स्वनियो के रूढ रूप
हैं, किन्छचु माप। का विकास इसी जोचार पर हुआ, यह भान ठेन॑। युवित्ततपत ল
स्रो । माप का अस्तित्व इससे मिथ है। किसी भी भाषा से पुस चन्द वहु
थोडी सल्या में ही मिलते हैं। ये श्राय चपण्व हैं।
मनुण्य का जीवन अनेक पशु-पक्षियों के बीच मे न्यप्ीत होता है भौर उसने
इनके बीच रहकर ৩পপী। পভ ও।ণাআ। (2121002] 01855) का जचुकरण
कर लिया हो, यह स्वाभाविक ही है। कुछ पशु-पक्षियों के चोम जैनेक माषामों
में उनकी भावाजों के आधार पर बचे आज भी अचलिप हैं। जैसे न्यायः)
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