अमर शहीद भगत सिंह | Amar Shahid Bhagatsingh

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : अमर शहीद भगत सिंह  - Amar Shahid Bhagatsingh

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about वीरेंद्र सिन्धु - Virendra Sindhu

Add Infomation AboutVirendra Sindhu

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
रहे थे; फिर भी उनके कदम पीछे नहीं हटे । उन्होंने नई पीढ़ी में जन्मे दो नन्हें सेनानी देश की बलिवेदी के लिए तैयार कर दिए | जगतरसिंह की मृत्यु ग्यारह वरष की अल्पायु में ही हो गई थी | भगतसिंह के पिता सरदार किशनसिंह ने लाहौर के पास कुछ जमीन खरीद ली थी | वहां कुछ काम-घंघा कर नेनें के बाद वे श्रधिकतर लाहौर में रहते थे । गांव में प्राइमरी स्कूल से पास होने पर भगतसिह माता-पिता के पास नवांकोट, लाहौर, चले गए जहां उन्हें डी० ए० वी० स्कूल में पांचवीं कक्षा में दाखिल करा दिया गया । गांव श्रौर शहर के स्कूल को पढ़ाई तथा वातावरण के श्रन्तर को ध्यान में रखते हुए उनके पिता ने भगतसिंह के लिए ट्यूशन का प्रबन्ध कर दिया | कुछ दिनों के बाद जब उनके पिता ने शभ्रध्यापक से पूछा : “शझ्रापका शिष्य कंसा चल रहा है ?” अध्यापक का उत्तर था : ” वह ॒दिष्य क्या स्वयं गुरु है । में उसे क्या पढ़ाऊं ? वह तो. लगता है पहले ही सब कुछ पढ़ चुका है । अध्यापक के ऐसा कहने का कारण यह था कि स्कूल की पुस्तकें पढ़ने के साथ- साथ बाहर की जो पुस्तकें एवं समाचारपनत्नर उन्हें मिल जाते उन्हें भी वे याद कर डालते थे । राष्ट्रीय समस्याश्रों पर उनका ज्ञान भ्रपनी कक्षा और उम्र दीनों से बहुत झ्ागे था । यह 1917 की बात है जब प्रथम विदव्युद्ध चल रहा था । गदर पार्टी ने भारत में म्रंग्रजों के विरुद्ध गदर करने की योजना फरवरी 1915 में बनाई थी, जो कि श्रनेक कारणों से असफल हो गई । उसके नेता गिरफ्तार कर लिए गए थे श्रौर उन पर मुकदमा चलाकर उन्हें फांसी, कालेपानी आ्रादि की सजाएं दी जा चुको थीं । यद्यपि मुकदमे की खबरें काट-छांट कर ही में छपती थीं, फिर भो युद्ध की खबरों के बाद जनता के लिए सबसे उत्तेजनापूर्ण खबरें वे ही होती थीं । भगतसिंह उन खबरों को बहुत ध्यान से पढ़ते और उनको वहुत जोश झाता । बचपन में सरदार शझ्रजीतसिंह, सूफी श्रम्बाप्रसाद श्रौर लाला हरदयाल द्वारा लिखी पुस्तकों को पढ़कर भगतसिंह के मन पर मभंग्रेजों के प्रति जो विद्रोह की भावना उमड़ी थी वह इन खबरों से और भी जोर पकड़ गई । उनके मन पर इसका बहुत प्रभाव पड़ा । वे इसके बारे में अक्सर श्रपने पित्ता से चर्चा करते । 22 जुलाई, 1918 को भगतसिंह ने अपने दादा सरदार श्रर्जुनर्सिह को यह पत्र उर्दू में लिखा : श्रोम्‌ . श्रीमान्‌ पुज्य बाबा जी, नमस्ते, भ्रज॑ यह -है कि खत श्रापका मिला । पढ़कर दिल को खुद्ली हासिल हुई ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now