लोभ समीक्षण | Lobh Samikshan

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Lobh Samikshan by आचार्य श्री नानेश - Acharya Shri Nanesh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जो 1 ममीसण | [ ११ फर्भी-पर्भी प्रण प्राणियों की होती ही है । कितु जिन प्राणियों को कुछ बौद्धिक विज्ञान होता है वे भी सम्यक विन्नान के झ्रमाव में गव के लोभ में अनेक पत्तियों बे शिकार बन जाते है । गध की सतुप्टि के लिए अ्रपने को विपन्नता पटन्‌ दते ८ दनी प्रकार स्थाद के लोभ में भी जनको प्राणौ मरण-णरणदहो जाते रह । यह रवादेन्द्रिय सम्बन्धी लोभ भी उतना खतरा उत्पन्न करने वाला होता है कि जिसका वर्णन शब्दों के माध्यम से कहना श्रशवयप्राय है । जिनके पास बिशेष चिन्तन शक्ति नहीं है वे रसनेन्द्रिय के श्रधीन होकर प्राणी की आहति दे, उसमे विशेष श्राश्चर्य की बात्त नहीं है। पर जिनके पास चिन्तन की शक्ति है, जीवन की महत्ता को विश्लेषित करने की बौद्धिक क्षमता है, थे भी सम्यकज्नान के श्रभाव में स्वाद-लोलुपता के वशीभूत होकर श्रमृल्य मनप्य-जी वन को भी खतरे में डाल देते हैँ | क्षपा है या नहीं, पाचन तत्न कार्य परता है या नही, इसका ध्यान रसे बिना ही साने के लोभ भें जायकेदार पदार्थ पेट मे ठालते रहते है। पाचन को कमी के कारण श्रन्दर ही अन्दर वे पदार्थ मटने लगते ह । उसके दुष्परिणाम जीवन में भगतने पड़ते है | गँस की बीमारी हो जाती है, वेचेनी हो जाती है । अनेक झीपधियाँ लेने पर भी उससे छटकारा 1 मिलता | दद से बेचनी बट जाती है । टाइफाइड, फोडे-पुन्सी हो जाते हैं । भजीण सवषा अ्रमेका बोमारिया तथा अनेक बातपित्त सम्बन्धों रोगों से ग्रस्त हो जाने पर उनसे निवृत्ति पाना प्रति ही कठिन हो जाता है । इतनी कठिनाइयाँ ग्राने पर भो रस का लोगी स्वाद के लोभ को छोड नही पाता ।




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