करे तीर्थ की परिक्रमा | Kare Tirth Ki Parikrama

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : करे तीर्थ की परिक्रमा  - Kare Tirth Ki Parikrama

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about आचार्य श्री रामलाल जी - Achary Shri Ramlal Ji

Add Infomation AboutAchary Shri Ramlal Ji

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
[श्र य उबाच-0 ~~~ ` उन्हें शाश्वत रूप में विवेचित करते हुए तो हमारा जीवन सार्थक बनेगा। अंतर के तीर्थं मे अवगाहन करने का पुरुषार्थ करेंगे तो जीवन धन्य बनेगा। हम अंतर के तीर्थ को ट्टोलें, उसकी शरण में जाये, उसे. साधे, क्योकि “एके साधे सब सधे।'' कहते हैं, एक बार देवों में होड़ लगी कि सबसे पहले पूजा किसकी हो। एक कहता है मेरी, दूसरा कहता -है मेरी। उलझन पैदा हो गई। बात पहुँच गई विष्णुजी के पास। विष्णुजी ने सोचा कि किसी एक का नाम ले लिया तो कहेंगे पक्षपात कर दिया। जब दिमाग में ही पक्षपात भरा होता तो लोग भगवान को भी नहीं छोड़ते। अत: विष्णुजी ने कहा- जो पृथ्वी की परिक्रमा करके संबसे पहले आ जायेगा, वही प्रथम पूजनीय होगा। सभी देव विमान लेकर फुल स्पीड से दौड़ पड़े। गणेशजी का वाहन है मूषका अत: वे चिंतित हो गये। बृहस्पति ने देखा तो पूछा- तू परिक्रमा क्यो नहीं कर रहा है 2 गणेशजी ने कहा- प्रतियोगिता में सफल तो वैसे भी नहीं हो सकता, क्योकि मेरा वाहन तो मूषक है तो व्यर्थ का प्रयास क्यों करूँ ? बृहस्पति ने समझाया- अरे ! सारे देवता बाहर कौ पृथ्वी की परिक्रमा कर रहे हैं, वह तुम्हारी माता घर की तीर्थ हैं। जैसे पृथ्वी सबको झेलती है, बैसे ही माता भी सबको झेलती है। माता की ही परिक्रमा कर लो, पृथ्वी की परिक्रमा हो जाएगी। गणेशजी को मार्गदर्शन मिल गया। उन्होने मूषक ` पर बैठकर माता.कौ परिक्रमा कर ली। तभी प्रतियोगिता की समाप्ति का घंट बज गया। दूसरे तो कोई आये नहीं थे। देव आये तो बताया गया कि गणेशजी ने सबसे पहले परिक्रमा पूरी कर ली थी। बस, बाहर कौ करने वाले रह गये। घर कौ तीर्थ माता होती है। उस माता की परिक्रमा जैसे होती हे वैसे ही हम अपने तीर्थ की परिक्रमा कर लें तो जीवन धन्य हो जाये। पर यह-बात समझने की है। यह समझ में भी तभी. आती हें जब अंतर शुद्ध हो, अंतर के द्वार खुल चुके हों।. धर्मशास्त्र ऐसे उदाहरणों से भरे पड़े हैं, पर बात तो ज्ञान की है। अतः आत्मा के शुद्ध रूप को प्राप्त करें तो सब दुःख-दुर्भाग्य समाप्त हो जायें। 24.09.2000




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now