श्रद्धा विधि प्रकरण | Shraddha Vidhi Prakaran

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Book Image : श्रद्धा विधि प्रकरण  - Shraddha Vidhi Prakaran

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्राद्ध-विधि प्रकरण ७ म म ५ २५७८६ ०६ २९३९-०६ 4६ 2५ ५ म ५ >५३५ 2५ ८तन 2 चलन 2५ 4५ 2९७८६७+५३५ २६०६ २९२६ #६ ८४ २६ २६७३५ २५७३६ 2६८४ ४९-३६०४ 7९ १९:५ २४: পা লী পি ^^ ^~ ^^ ^^ ^^ ^^ ^-^ ^~ था, उस नगरमें बड़े ही दयाल्ु लोग रहते थे | हर एक तरह से सम्दद्धिशाली ओर सदाचारी मनुष्यों की बस्ती वाले उस नगर में देवकुमार के रूप समान ओर शत्रुओं को सन्तप्त करने में अभ्नि के समान तथा राज्यलक्ष्मी, न्यायलक्ष्मी और घर्मेलक्ष्मी एवं तीनों प्रकारकी लक्ष्मी जिस के घर पर स्पर्धा से परस्पर वृद्धि को प्राप्त होती है। इस प्रकार का रूपध्यज राजाका प्रतापी पुत्र ऋकरध्वज़ नाम का राज्ञा सज्य करता धा । एकवार क्रीड़ा रसमय वसंतकतु में चह राजा अपनी रानियोंके साथ क्रीड़ा करने के लिये वाग में गया । जलकीड़ा, पुष्पकीड़ा प्रमुख विविध प्रकार की अन्तेडरियों सहित क्रीड़ाएँ करने गा । जैसे कि दस्तिनियों सदित कोई दाथी क्रीड़ा करता है । क्रीडा करत सपय राजा ने उस वाग के अन्दर एक बड़े ही सुन्दर ओर सघन आम के चुक्ष को देखा | उस वृक्ष की शोभा राजा के चित्त को मोहित करनी थी | कुछ देर तक उसकी ओर देखकर राजा उस घृक्षका इस प्रकार वणन करने छगा | र छाया कापि जगतूप्रियां उलतति द ेऽतुरं मेगलम्‌ | मे जयुद्वम एष निस्तुलफले प्फति निमित्तं परं ॥ जआकाराश्च मनोहरास्तरुवरश्रेणिषु खन्पुख्यता । पथ्या कल्पतरे। रसाटफल्द्‌। त्रमस्तव॑व ध्रवम्‌ ॥ ९ हे मिष्ट फलके देनेवाले आघ्रवृक्च ! यह तेरी सुन्दर छाया तो कोई अछोकिक जगततप्रिय है | तेरी पत्रपंक्तियां तो अतुलरू मंगलकारक हैं । इन तेरी कोमल मश्नरियों का उत्पन्न होना उत्कृष्ट बडे फलों की शोभा का दी फारण है, तेरा वाह्य द्वए्य भी बड़ा ही मनोहर है, तमाम वृक्षों की पंक्ति में तेरी ही मुख्यता है, विशेष क्या वणन किया जाय, तू इस पृथ्बी पर कब्पवृक्ष है। । इस प्रकार राजा आम के पेड़ की प्रशंसा कर के जैसे देवांगनाओं को साथ लेकर देवता लोग नंदनवन में कव्पवृक्षकी छाया का आश्रय लेते हैं वैसे ही आदर आनन्द्‌ सहित राजा अपनी पलियों को ठेकर उख वृक्ष की शीतल छाया में आ चैठा मूत्तिबंत शोभासम्रह के समान अपने स्वच्छ अम्तेउर वर्ग को देखकर गये में आकर কালা ख्याल करने लूगा कि यह एक विधाता की बड़ी प्रसन्नता है कि जो तीन जगत से सार का उद्धार फरके मुझे इस प्रकारका स्लीसमृह समर्पण किया है। जिस प्रकार गृहों मे सवे तारा चन्द्रमाकी स्त्री स्प है वैसे दी वैसा खच्छ ओर सर्वत्छि्ट अन्तःपुर मेरे सिवा अन्य किसी भी राजाके यहां न होगा। वर्षाकाटमें जैसे नदियों का पानी उमड़कर बाहर आता है घेसे ही उस राजाका हृदय भी मिथ्याभिमान से अत्यन्त बड़प्पन से उमड़ने लगा । इततेही में समय फे उचित बोलनेवाला मानों कोई पंडित ही न हो ऐसा एक तोता उस आमके वृक्षपर वैखा था सप्रकार श्लोक बोलने लगा। ्ु्र्यामि न कस्य स्याद्वै श्वत प्रकल्पितः । रोते पातनयाग्योम्नः पादावुल्िप्यारोश््भः ॥ जिस प्रकार सोते समय रिटोडी नामक पक्षी अपने मने यह अभिमान करता है कि मेरे ऊंचे पैर, रखने




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