मृगनयनी | Mrignayani
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
545
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सृगनयनों ६
'अकेके मे मिल जभ्य तो मुंह पर गोवर का रूड्डू मार” उसने सोचा ।
निन्नी हंसकर वोली, “अच्छा जाने दो । मन्दिर की तरफ चलो।
~ त॒म भन्न +
“हम तुम सुव ।
( {तारजं भवथ भी ১
जी भी गायेंगे ?
धयों नहीं गायेंगे बह एक गीत गाते हैं। उसका रसिया में गा
दूगी। तुम गा सकती हो ? |
শা 21 /
ही | कितनी देर होंगे रसिये ? मां गाय को चराकर आती
ने पीसना है, फिर रोटी बनानी हैं ।
सो तो घर घर में यही होने को हैँ । होली तो नित्य-नित्य' आत्ती
'नहीं । चलो, थोड़ी देर भूखे ही सही 1
वे दोनों एक हुल्ल ओर बढ़ीं । हल्लड़ मोड़ पर था ।
क भागा ! सिकन्दर भागा ! [* कते हुये कुछ लोग अटल
के पीट दौड़ रद थे । अटल दिल्ली के वादशाह का अभिनय करता
1 कददा-फांदता जा रहा था। वीच-वीच দল নত
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21
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मौर छोटे छोटे ककड मौर सूखे गोवर के टुकड़े पचियाने वालं पर
फकता जा रहा था । दिल्ली थाले को वेसे नहीं मार पाया था तो यों
छः
एस से छाये हुये खंडहल के बाहर अधेड़ अवस्या वाला हँसता हुआ
पुजारी निकटा |
2:
विल्लाया, शोल्ो रे हरि भावव की जय! राधाकृष्ण की जथ 11
भाइ न दुह्राया।
द
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Yaduveer Singh
at 2021-05-12 13:23:36