मृगनयनी | Mrignayani

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Mrignayani by वृन्दावनलाल वर्मा -Vrindavanlal Varma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सृगनयनों ६ 'अकेके मे मिल जभ्य तो मुंह पर गोवर का रूड्डू मार” उसने सोचा । निन्नी हंसकर वोली, “अच्छा जाने दो । मन्दिर की तरफ चलो। ~ त॒म भन्न + “हम तुम सुव । ( {तारजं भवथ भी ১ जी भी गायेंगे ? धयों नहीं गायेंगे बह एक गीत गाते हैं। उसका रसिया में गा दूगी। तुम गा सकती हो ? | শা 21 / ही | कितनी देर होंगे रसिये ? मां गाय को चराकर आती ने पीसना है, फिर रोटी बनानी हैं । सो तो घर घर में यही होने को हैँ । होली तो नित्य-नित्य' आत्ती 'नहीं । चलो, थोड़ी देर भूखे ही सही 1 वे दोनों एक हुल्ल ओर बढ़ीं । हल्लड़ मोड़ पर था । क भागा ! सिकन्दर भागा ! [* कते हुये कुछ लोग अटल के पीट दौड़ रद थे । अटल दिल्‍ली के वादशाह का अभिनय करता 1 कददा-फांदता जा रहा था। वीच-वीच দল নত চি 21 ह मौर छोटे छोटे ककड मौर सूखे गोवर के टुकड़े पचियाने वालं पर फकता जा रहा था । दिल्‍ली थाले को वेसे नहीं मार पाया था तो यों छः एस से छाये हुये खंडहल के बाहर अधेड़ अवस्या वाला हँसता हुआ पुजारी निकटा | 2: विल्लाया, शोल्ो रे हरि भावव की जय! राधाकृष्ण की जथ 11 भाइ न दुह्राया। द




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  • Yaduveer Singh

    at 2021-05-12 13:23:36
    Rated : 8 out of 10 stars.
    Download nhi ho rahi.. please provide the solution..
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