स्वराज्य के पचास वर्ष बाद | Swarajya Ke Pachas Varsh Baad

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Swarajya Ke Pachas Varsh Baad by कृष्णचन्द्र - Krishnchandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४ मेरा मन.पसन्द पृष्ठ सोचते जादे श्रौर देखिये कफि जीवन कितना दिलचस्प होता घा रहा है। इससे श्रगला फालम देखिये। यह भकानो का कालम है } श्राजफन मकान ढहों ढूंढ से भी नहीं मिलते, परन्तु इन कालमो में श्रापको हर तरह फे मकान मिल जाएग । “भरे पास समुद्र के किनारे एक वगते मे एक श्रलग कमरा है । परन्तु मे शहूर में रहना चाहता हूँ। यदि कोई सज्जन मुझे शहर में एक श्रच्या-सा फमरा ই सकें तो मे उन्हें समुप्र फे किनारे फा श्रपना फमरा उसके सामान के साय दे दगा । सामान में एक सोफा-संद्‌, दो टेबल-लस्प श्रीर एकं पोतल फा लोटा सम्मि- लित है ।” लीजिये, यदि श्राप शहरी जोवन से उकता गए हों तो समुद्र के किनारे भाकर रहिये । यदि श्राप समत्र फे किनारे रहने से धवराते हो तो शहर में जाकर रहिये । यह दूसरा विज्ञापन देलिये---“किराए के लिये खाली है, नया मकाग, प्राठ फमरे, दो किचन, स्नन-गृहं श्रौर गेरिज भो है । मकान के ऊपर छत श्रभो नहीं है, परन्तु प्रगले महीने तक तैयार हो जाएगी । फिराएदार पुरन्त ध्यान दें ।” श्राप यह विज्ञापन पढ़कर तुरन्त उधर ध्यान देते हूँ बल्कि फपडे बदलकर चलने का निरचय भी कर लेते हे कि इतने में ` ^ दृष्टि प्रगली पदिति पर पडती है । लिला है--“किराया उचित, „ एक वषं का पेशगी देना होगा । वार्षिक किराया अठारह हजार ~ 1 प्रर श्राप फिर बैठ जाते हं श्रौर মালা विज्ञापन देखते हे । शगले विज्ञापन में लिखा है--“उत्तम भोजन, सुन्दर दृश्य, फर्नीचर है उुस॒ज्जित खुला फमरा, बिजली पानी मुफ्त 1 सब मिलाकर किराया ३५०) माहवार । ” श्राप हर्षोत्मत्त होकर चिल्ला उठते हैँ--मिल गया, सुझे एक फमरा मिल गया । कितना सस्ता और श्रच्छा, श्रौर खाना साय में । वाह, वाह ! श्राय तुरन्त पत्र लिखने को सोचते है, भौर फिर कलेजा ध्रामकर बैठ जाते है कर्योकि भागे लिखा है--/दिलकश होठल, दाजि-




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