भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन का इतिहास | Bharteey Swatantrata Andolan Ka Etihas

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Bharteey Swatantrata Andolan Ka Etihas by हुमायूँ कबीर - Humayun Kabir

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about हुमायूँ कबीर - Humayun Kabir

Add Infomation AboutHumayun Kabir

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
भूमिका 19 एशियायी जहाज में लाया जौर ले जाया जाता था; चहसव मद पुर्वगाली जहाजों में नाने-जाने लगा सौर भारतीय जहाजरानी-उद्योग को घातक आघात पहुंचा । दूसरी वात, चूंकि भारतीय नॉकानयन समाप्त हो गया, इसलिए दक्षिणपुर्वी एशिया के साथ भारत के सांस्कृतिक सम्बन्ध टूट गए और गंगा के प्रदेश से परे वर्मा से लेकर इंडोनेशिया तक के देश भारतीय प्रभाव-क्षेत्र से वाहर हो गए। जिस भारतीय संस्कृति ने थाइलैण्ड, इण्डोचीन और इण्डोनेधिया की शानदार और अदुभुत्त उपलब्धियों को प्रेरणा दी थी; जिसने सलाया, सुमान्ना, जावा और पूर्वी द्वीप-समूह के हीपों के पार तक फैले विशाल साम्राज्यों के निर्माण में सहायता दी थी और जिसने इन प्रदेशों को एक नया और नई सम्यता प्रदान की थी, उसकी प्रगति अचानक अवद्द्ध हो गई। सबसे बड़ी वात यह है कि पूर्तगालियों का भारतीय सट पर पांव रखना भावी का एक पूर्व-संकेत था । विज्ञान के नए लाविप्कारों; मानव की प्रतिप्ठा और समाल के संगठन के नए आदर्शों ; तया भौतिक उन्नति औौर राष्ट्रीय शक्ति की नई कल्पनाओं से उ्परित होकर एक पुनरुज्जीवित और आरत्म-विश्वासयुक्त यूरोप कर्मक्षेत्र में जुट पड़ा था गौर उसने पूरव के सबसे समृद्ध देश के द्वारों को खटखटाना आरम्भ, कर दिया था। लेकिन अकबर महानु जौर शान-शौकत-पसत्द शाहजहां का अपार वैभव- सम्पन्न, अपनी के लिए ट्रर-दुर तक विख्यात और देदीप्यमान संस्कृतिवाला भारत अठारहवीं सदी में पहुंच कर अपनी ताकत खो चुका था। वह मुगल- साम्राज्य के नाम-मात्र के प्रभुत्व के नीचें गांवों, जातियों या उपजातियों, कवीलों और ताल्लुकों का एक मध्य-युगीन जड़ पिंण्ड-मात्र रह गया था। भारत की बयें- व्यवस्था कृषि-प्रधान थी, उसकी कार्य-प्रणाली अत्यन्त पुरानी थी, उसका संघटन संकुचित था, उसका लक्ष्य गुज़ारे के लायक चीज़ों का उत्पादन था 1 भारत का उद्योग बहुत छोटे पैमाने का था और उसका उद्देश्य या तो अमीरों के लिए विलास-सामझ्री बनाना था. या स्थानीय वाज़ार की मामूली जरूरतों को पुरा करना । इसमें पूंजी का योगदान बहुत ही नगण्य था । इसके विपरीत, यूरोप वाज़ारों का विकास कर रहा था। वह अमेरिका से सोने और चांदी के खज़ाने ला रहा था, जिससे उद्योग और वाणिज्य को नवजीवन मिल रहा था । तेज़ी से वढ़ती हुई पूंजी के दवाव में विशेषज्ञता का विकास हो रहा था मीर व्यापारी एवं वैंकर भूस्वामी कुलीन-वर्ग पर खाते जा रहे थे । यूरोप के दिमाग को जो वन्धन-मुक्त कर रहा था और उसे नई- नई खोजों तथा भाविष्कारों के लिए उकसा रहा था, वह उम्र वैज्ञानिक आन्दोलन भारतीय बुद्धि को अभी तक नहीं पाया था । भारत का सामाजिक जौर व्यक्तिगत आचरण उन सशक्त भावनाओं से अनुप्राणित नहीं हुआ था, जो यूरोप के सामन्तवादी एवं अराजक समाज को सुसंगठितत ठोस राष्ट्रों में रूपान्तश्ति कर रही थीं। यरोप में घर्म का युग समाप्त हो रहा था और तक का युग ड्योढ़ी पर था, जब कि भारत के उच्चतम मनीपियों का दृष्टिकोण अभी तक परनलोकोन्मुख था और उनकी सर्वीच्च आकांक्षा थीं, परमतत्व के साथ एकाकार होना । सदहवदीं शताव्दी में भारत का गौरव मपनी पराकाप्ठ पर था और उसकी मध्य-पुगीन संस्कृति अपनी चरम सीमा पर पहुंच गई थी । पर एक-के-वाद-एक जैसे-जैसे शातान्दियां वीतीं, वैसे-वैसे यूरोपीय सभ्यता का सूर्य तेड़ी से माकाश के मध्य की ओर लक




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now