ज्ञान सरोवर भाग - 2 | Gyan Sarovar Bhag - 2

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Gyan Sarovar Bhag - 2 by हुमायूँ कबीर - Humayun Kabir

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मूरज कौ भाति चदिमे भी काले काले धब्बे दिखाई देते है। देश देश के लोगो ने उन ध्व के आकार के बारे में अलग भख धारणां वना रखी हं) कही उन धनब को चरा कातती हुई बुद्धि की परछाई, कहीं हिरन श्र कहीं खरगोश समझा जाता है। पर बड़ी दूखीन से देखने पर साफ दिखाई देता है कि वे काले धब्बे वास्तव में बड़े वडे मैदान ह, जिनमे वेडे वड़े गड्ढे प्रौर ऊ ऊंचे पहाड़ हैं। दूरवीन का आविष्कार करनेवाले गंलीछियो ने _ उन्हें समुन्दर समझा था, वयोकि उसकी छोटी सी दुरवीन से चॉद की सपाट सतह ही दिखाई देती थी, उस पर उभरे हुए पहाड नहीं दिखाईं देते थे सुवह्‌ श्रौर गाम को जव चाँद की चमक 4 कणिका गे फीकी होती है तब उसके धब्बे बहुत साफ़ प्वादई॑ लीन मानल ह देते हैं।. ` + सो से देखने मे चदरमा सुदर दिखाई देता है! कितु दूरबीनं से देखन में वह ्रौर भी सुदर रगता है। द्रबीन से देखने के रहिए तीज या चौथ का दिन सबसे अच्छा होता हैं । इन दो दिनो चौद के जिस भाग में रोशनी रहती है, उसके भीतरी छोर पर सूरज की धूप तिरी पडती हैं, जिससे वहाँ के ज्वालामुखी पहाड़ो कौ परछाइयों लम्बी होकर पडती है । उस समय साफ दिखाई देता है कि चाँद की सतह के पहाड उभरे हुए हं शौर भ्वारमुली पहाड गड्ढो जंसे हे । (७) क) १ २।]




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