ढून्ढक मत से मूर्ति मंडन | Dudak Mat Se Murti Mandan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
526 KB
कुल पष्ठ :
20
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ११)
मेरे पंत पर सिद्धालय ओर जिन प्रतिमा बतलाई गई हैं जो यहाँ
विस्तार के भय से नहीं लिखी गइ । चस अप में यहाँ ' श्वेताम्चर
स्थानकवासियों से पूछता हूँ कि आप अपने इन सूत्रों को मानते हैं
या नहीं । यदि मानते हैं तब्र तो श्रापकों मूर्तिपूजा मंजूर करनी
पड़ेंगी यदि नदीं मानते तो बतलाइये यद स्थानकमत झ्ापने किस
गम प्रमाण पर प्रदण किया ।
व में एक श्रोर ताजा उदादरण प्रत्थक्त मूर्तिपूजा पर झापके
मने रखता हूँ और बद इस प्रकोर हैकि सोंनगढ़ (काठियाबाड़)
निवासों “जी कान्हजी स्वामी” जोकि एक बड़े विख्यात स्थोनक-
वासी साघु थे ओर बद इक्कीस साल तक उसी वेश में रहे । उस
अवस्था में उन्दोंने स्थानकमत के सूत्र भी खूच देखे परन्तु जब
उनको उन सूत्रों में कहीं भी अर स्य कल्याण का मांग न मिला शोर
न कहीं मूर्तिपूजन का निषेध ही मिला तब उन्होंने दिगम्बर घम दे
“समयसार, आत्नानुसाशन, परमात्ना प्रकाश, पंचाध्यायी आदि
ग्रन्थों को पढ़ा तो एक दम से उनके दर्य के कपाट खुल गये
यह पक्का विश्वास होगया कि आत्मा का कल्याण हो सकता है
तो दिगस्बर घर्म से हो हो सकता है, श्वेताम्बरमत से नहीं, अतः
इसी समय से उन्होंने चह स्थानकंवासी साधु का वेश स्याग दिया
बार दिगम्बर घर्म के अनुयायी चने गये ।
श्री कान्दजी स्वामी अध्यात्व के प्रकारड पश्डित श्री कुन्दु-
कुन्दाचाय के परमभक्त, समयसारादि के रइस न प्रभावक पुरुष हैं
ापकी अध्यात्तिक वाणी में जादू है । यही कारण है कि
उपडेग से प्रभावित होकर राजकोट, लीवंडी, सावनगर, सूरत,
सांनयढ़ दि शोर थी कितने हो स्थानों के स्थानकवासी चार
इजार के करीब नर नारी भगवान कुन्रकुन्द ब्याचार्य एवं दिशम्यर
परस्पराय के अनुयायों बन कर मूरतिपूजा-दर्शन करने वाज़े हो
गये हैं ! सोंनगड़ में शो कान्दमी स्वामी ने नया सन्दिर बनवा कर
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