साहित्य की झाँकी | Sahitya Ki Jhanki

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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2 हिन्दी में भक्ति-काव्य का आविभोव की कला ने सवसे पहसे मनुष्य के मनोरंजन का एक नया दवार खोला! चौपाल पर बैठे हुए. अगिहानों पर तापते हुए राजा-रानी और उनके विवाह की रोचक कहानियाँ अपने रोचक लह्ज़े में जीवननयात्रा से विश्रान्त वृद्ध, जीवन-न्षेत्र के नये पटेबाज़ों को सुनाया करते थे। चन्द्रवरदायी की पद्मावती को कहानी का ढाँचा--कढीं वहीं से लिया गया होगा। হাজী ক इस भाग में कुच्ध ध्यान देने योग्य वातें हैं । 'पद्यावती प्र्वीराज को चाहती है । प्रथ्वीराज के पास तोते के द्वारा सूचना भेजती है | प्रध्वीराज सेना सजाकर पद्मावती को विवाहने जाता है | विवाह हो जाता है ।' --इसमें दीका पुरुषके प्रति प्रेम श्रीर एक पक्तौ के द्वारा उसका सम्बाद्‌ कहलाना वतलाया गया है ।- प्रेम-माग के काव्य में भी हमें यह ढाँचा दीख पड़ता है | पद्मावत में पद्मावती रत्नसेन को चाहने लगती है । हीरामन तोता उन दोनों के मिलन का साधन है। रत्नसेन घरबार छोड़कर अनेक कष्ट मेज्नता हुआ सिंहल पहुँचता है। पद्मावती से विवाह होता है ओर घर लौट आता है। जिस प्रेरणा ने प्रथ्वीराज रासो में चन्दवरदायी को पद्मा- वतो की कहानी उस युद्ध के युग में लिखने को वाध्य किया, वह्‌ प्रेरणा जायसी के समय १५९७ में पूर्ण परिपक्व हो गयी । यह तो नहीं कहा जा सकता कि रासो में चन्दवरदायी की प्रतिभा से उपजनेवाली कृति के ही अनुकरण से अथवा उसी ने वीज पाकर प्रेम-मागे का प्रसरण हुआ), क्‍योंकि प्रेम-सार्मी ४




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