राजस्थानी कहावत कोश | Rajasthani Kahawat Kosh
श्रेणी : भारत / India, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15.12 MB
कुल पष्ठ :
439
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
गोविन्द अग्रवाल - Govind Agarwal
No Information available about गोविन्द अग्रवाल - Govind Agarwal
भागीरथ कानोडिया - Bhagirath Kanodia
No Information available about भागीरथ कानोडिया - Bhagirath Kanodia
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)राजस्थानी कहावत कोश
श्र
झ9
शुद,
श£.
द्श्
२.
दे.
घ्
च्,
द्दद्,
घ्रड़ी-बड़ी में श्राडो झावे जिको ई श्राप को ॥
जो समय पर काम आये, वही श्रपना ।
अरणकमाऊ बीरो, नित उठ मांगे सीरो 1 .
भाई साहब कमायें-कजायें कुछ नहीं और खाने के लिए नित्य हलवे की मोग
करें ।
असर श्र झांधो बराबर होवे ।
अन्धा और श्रनजान एक समान ।
श्रणजार तो भाठे के समान होवे 1
अनजान व्यक्ति पत्थर के वराबर होता है। श्रनजान को कोई लिहाज या
अपनत्व नहीं होता ।
रू० श्रसैधो मिनख भाठ वरोबर ।
श्ररणदोखो ने दोख, वींकी गति न मोख ।
निरपराध पर दोष मढने वाले की गति-मुक्ति नहीं होती ।
श्रसाधीज कै टाबर श्रर नादीदी के खसम ने बतदायड़ो ही बुरो ।
जिसे जरा भी घैय॑ या विश्वास न हो, ऐसी स्त्री के वालक एवं नदीदी स्त्री
के पति से बात करना भी बुरा ।
रू० अराधीज के टाबर मै खिलायेड़ो ही बुरो ।
श्रसापढ जाट पढ़े बरोबर पढचयों जाट खुदा बरोबर ।
श्रणपढचयोड़ो दायमो, पढचो पढायो गोड़ ।
बिना पढ़ा हुआ दाहिमा (ब्राह्मण) भी पढ़े हुए गौड़ के बराबर ।
रू० भरियों दूभै है'क दायमो ? ः
्रसाभरियां घोड़ां चढ़े, भरिणयां मांगे भीख ।
अनपढ़ तो घोड़ों पर चढ़ते हैं एवं पड़े लिखे भीख मांगते हैं ।
मध्ययुग में शक्ति को वरिष्ठता प्राप्त थी । प्रायः राजा व जागीरदौार पढ़े
लिखे नहीं होते थे, लेकिन फिर भी उनके यहां घोड़ों के ठाट रहते थे एवं
कवि श्रौर पण्डित उनके सामने हाथ पसारते थे ।
श्ररण मांगी तो दूध बरोबर, सांगी मिले सो पारी ।
वा मिच्छा है रगत बरोबर, जॉं सें टारणा टारणी ॥।
बिना मांगे जो भिक्षा मिले वह दूध के समान (साट्विक) , जो मांगने से मिले
चह पानी के समान श्रौर जो भिक्षा खींच तान करके प्राप्त की जाए वह रक्त
के तुल्य होती है ।
अरमांग्या मोती मिले, मांगी मिले न भीख ।
बिन मांगे तो मोती भी मिल जाते हैं श्रौर मांगने पर भीख भी नहीं मिलती ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...