उपनिषदों में काव्यतत्त्व | Poetic Elements In The Upanisads
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
364
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मष उपनिषदे मे काव्यतत्व
शाली शिखर के समान विद्वानों को अभिभूत करता रहा है और इस
कारण उसके अन्तस् में प्रवाहित होने वाली काव्य-मन्दाकिनी की ओर
उनकी दृष्टि ही नही गई ।
उपनिपदो में यद्यपि प्रभुसम्मित वाक््यो की प्रधानता है, पर
देखा जाय तो कान्तासम्मित वाक्यो की भी वहा कमी नही । इतना होते
हुए भी, इन भहान् आप ग्रन्था का काव्यगत अध्ययन कही इनको
पवित्नता को खण्डित न कर दे अथवा इनके गौरव को किसी प्रकार हानि
न पहुंचा दे, सम्भवत इसलिए काव्य के रूप म इनका अध्ययन उचित
नहौ समया जाता रहा । परन्तु, उपनिषदा की रचनाशंली वतातौ है
বি श्रहपित्व সী কলিং, বছান श्रौर कविता परस्पर विराधी न होकर
एक दूसरे के पूरक है ।
वेद ही नही, भ्रपितु निखिल ब्रह्माण्ड भी ईश्वर का काव्य है।
ऐसी स्थिति म ईश्वर श्रोर उसकी सृष्टि के गूढ रहस्य का प्रकाशन करने
वाले उपनिपद् काव्यत्व से गून्य कंसे रह सकते है ? भरतमुनि ने
इसी कारण नादूय के सभी अगा वी उत्पत्ति वदा से ही मानी है' ।
राजशखर ने भी तेयो म्रौरप्रान्वीक्षिकौ के उपरान्त साहित्य विद्या को
पाचवी विद्या मानत् हुए उसे चारा विद्याभ्नो का निष्यन्द माना है तथा
श्रलकार शास्त्र को सप्तम वदाग भी, वयोक्गि दसफे विना वेदार्थ वा ज्ञान
सम्भव नही ग्रत वेदा आर उपनिषदो बे प्रन्य पक्षा के भ्रध्ययन के साथ
१. जप्राह पाठ्यमृम्वेदात् सामम्यों गोतमेव घ ।
यजुवेदादभिनयान रसानाथयणादपि ॥
वेरोपवेद सम्बदो नाटघवेदो महामना ।
एवं भ्रगवता मृष्टो द्रह्मणर सलितात्मक ॥॥
-ना० ताण, ११७१८
२ घमो साहिस्यदिधा इति पायावरोय १ पाहि घतसूथामपि विद्यानां
निष्पाद 01
शिक्षा बस्पो स्पाइरण निष्वत छंद्ोविचिति ज्योतिद घ॑ बड़गानि'
हत्पाघार्या । उपक्ारव स्यादसदार' सप्तमभगम्' हति यायावरोय | ऋते थे
हाहबद पपरिजानाद देदार्धनिवगति ॥
आजा मौन, द्िठोयाध्याय, शास्त्रनिरेश
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