जैन-पूंजाजलि | Jain-Punjajali
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
322
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जय बोलो सम्यक दर्शन की
जय बोलो सम्यक दर्शन की । रत्लत्रय के पावनधन की 11
यह मोह ममत्व भगाता हैं, शित्र पश्च थें सहज लगाता है ।
जय निज स्वधाव आनट् धन की ।!जय बोलो ।।१।।
परिणाम सरल हो जाते हैं, सारे रकट टल जते है ।
जय सम्य. ज्ञान परम धन की ।। जय बोलो ॥1२॥।
जप तप सयम फल देते हैं, भव की बाधा हर लेते हैं ।
जय सम्यक चारित पावन की 1। जय बोलो 11३11
निज परिणति रूचि जुड़ जाती है, कर्मों की रज उड़ जाती है ।
जय जय जय मोक्ष निकेतन की ।। जय बोलो 11४11
तो से लाग्यो नेह रे
तोषे लाग्यो नेह रे त्रिशलानदन वीर कुपार |
नोसे लाग्यो नेह रे, कुन्डलपुर के राजकुमार ।।तोसे ।।९।।
गर्भकाल रत्नो क्री वर्षा, सोलह स्वप्न विचार ।
নিহালা माता हुई प्रफुल्लित,, घर-धर मगलाचार ।।तोसे 1111
जन्प सप्रय सुरपति सुपेरू पर, करें पुण्य अभिषेक ।
तप कल्याणक लौकान्तिक आ करे हर्ष अतिरेक ।।तोमे 1311
चार घातिया क्षय करते ही पयो केवल ज्ञान ।
सपवशरण में खिरी दिव्यध्वनि, हुआ विश्व कल्याण |।নীমী 111।
पावापुर से कर्मनाश सब पाया पद निर्वाण ।
यही विनय हे दे दो स्वामी हपको सम्यक. ज्ञान ।।तोसे ।।५1।
भेटज्ञान की ज्योति जगा दो अधकार कर क्षार |
तुम सपान पै भी बन जाऊे हो जाऊ भव पार ।।तोसे ।।६।।
सुनी जब मेने जिनवाणी
भ्रम तमप पटल चीर, दरसायो चेतन रवि ज्ञानी ।।सुनी
काप क्रोध गज शिथिल भए, पीवत सपरप पानी ।
प्रगट्यो भेट विज्ञान निजतर, निज आतप जानी ।।सुनी 11१1॥
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