राजस्थानी बात - संग्रह | Parmpara Rajasthani Baat-sangrah

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Parmpara Rajasthani Baat-sangrah by नारायणसिंह भाटी - Narayan Singh Bhati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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राजस्थानी वात-सग्रहू # १७ उजाला नानक अनाज मानव-भावनाओ का सीधा श्रादान-प्रदान एक वहुत बडी विशेषता है जिससे भावानुभूतियों को अधिक विस्तार मिल सकता है । वातो में नाटकीयता लाने के लिए कथोपकथनो का प्रयोग हुआ है। कई कथोपकथन वहुत छोटे हैं तो कई वहुत बड़ें । गद्य श्र पद्य दोनो के माध्यम से इनका प्रयोग हुम्मा है। पद्य में प्रायः वे कथोपकथन मिलेंगे जिनमे भाव-पुर्ण निवेदन अथवा व्यंग होगा । इनसे पात्रों की चारित्रिक विशेषताश्रों के उद्घाटन मे तथा कथा-सूत्र की प्रगति मे सहयोग मिलता रहा है तथा कथा में रोचकता, सजीवता श्रौर भाव-प्रकागन की अद्भुत क्षमता श्रा गई है । जहाँ तक कथा-तत्व का सम्बन्ध है, इनमें मुख्य कथा के श्रतिरिक्त छोटी-बड़ी श्रत्य सहायक कथाश्रो का भी प्रयोग सिलता है । प्रासगिक कथा मे भी कई वार दूसरी कथा श्रा जाती है श्रौर कई कथाओओ का क्रम तो एक दूसरी कथा मे से निकलता हों चला जाता है । राजाभोज से सम्बन्ध रखने वाली कई कथाशओ में इस तरह का तारतम्य मिलेगा । एऐंतिहासिक पुरुषों से सम्बघ रखने वाली कई कथाओ मे छोटी वडी कथाएँ जिनका एक दूसरी से विशेष सम्बंध नही है, मिल कर नायक की चारित्रिक विशेपताश् पर प्रकाश डालती हैं । संकलित वातो मे ' महाराजा पदमर्सिह की वात इसी तरह की हू । उपरोक्त दैलीगत विवेचन मे यह वात भी ध्यान देने की है कि कथानक के कई स्थलों पर पद्य मे कही हुई वात श्रोताश पाठकों की सुविधा के लिए फिर से गद्य मे दोहराई जाती हैं पर वर्शन-शैली की रोचकत्ता के कारण पुनरावृत्ति दोप दिखाई नहीं पड़ता । इन बातो की भाषा पुरानी राजस्थानी है पर समय के दौरान मे भाषा का रूप निरतर वदलता गया हैं, इसलिए सम्पादित वातो की भाषा का रूप अधिक प्राचीन नहीं है । यहाँ प्रयुक्त भाषा का सबसे बड़ा गुण उसकी सहजता श्रौर सजोवता है । वर्सुनात्मक स्थलों पर इतनी सदाक्त भाषा का प्रयोग है कि सहज ही मे चित्र उपस्थित हो जाता है । वार्तालापों मे प्राय पात्रों के भ्रनुरूप ही भाषा का प्रयोग मिलता है । यहाँ तक कि कई वातो मे तो मुसलमान के मुंह से उर्दू श्रथवा फारसीमिश्रित भापा प्रयुक्त हुई है। जैसा कि पहले कहां _ जा चुका है, इन बातो की मूल प्रकृति कहे जाने की है, अत भाषा में भी उसके ही लयात्मकता, रवानगी श्रौर सहजता है । भाव श्रौर वस्तु-वर्णन दोनो ही मे भाषा की यह अ्रभिव्यवित-झ्षमता अपने श्रौचित्य के साथ हष्टिगोचर होती




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