निबन्ध-रत्नमाला | Nibandh-Ratnmala

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Nibandh-Ratnmala by पंडित चंदाबाई जी - Pt. Chandabai Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आनच-हृदय । का उपाय कर | इसके लिए हर समय श्रच्छी अच्छी पुस्तकों का श्रवलोकन करते रहने की श्रावश्यकता है जिससे हृदय मैला न पड़ । जिस शुभ काय्यं को करना हो उसका चिन्तवन सदैव करे, तभी चित्त श्रनुकूल होकर इसको करने देगा। यदि विचार में कत्तव्य को नहीं रकक्‍्खा जाय ता चिन्तवन किया हुआ कार्य कदापि निर्विन्न समाप्त न हो सकेगा । चारे वतमान मं याम्यता লী হা, किसी तरह की रुकावट भो हो: परन्तु उच्च विचारां से मुँह न मोड़ना चाद्धिए | सदेव बड़े बड़े कठिन से ऋठिन कार्य्या' को करने की इच्छा रखनी चाहिए । सनुप्य जब सौगुना सोचता है तत्र एक गुना कर सकता है | और यदि विचारों में ही हृढ़ता हीन हो जाती है तब कूछ नहीं कर सकता | आदर्श जीवन बनाने के पहले आदश्श हृदय बनाना चाहिए । जे हदय निष्कम्प रं. जिसका कायरता हिल्ला नहीं सकती वहीं आादश बन सकता हैं। जिस हृद्य मं चल्चत्तता भरी है। जा ज़रा सी बात के सुनने से डामाडाल हो जाता है, जा घोड़े से कष्ट का देखकर पीछे इटता रे तथा विचार-शृन्य हकर कार्यक्रम में बाधा डालता है, वह हृदय कदापि उच्च श्रेणी पर नही चटने दता । उसी प्रकार जे तरा सी बाई मे फूल उठता है, ड़ सी नामवसी के लिए कत्तज्याकनव्य का विचार छाड़ नैठता है वह द्रदय भी इसी सूगड़ मं मर मिरता है । परन्तु जो स्वविचारों को उच्च बना कर अपने कर्तव्य पर ध्यान कं এ द. म




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