नागरीप्रचारिणी पत्रिका | Nagripracharini Patrika

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कैटिलीय प्रथेशाल में राजा का खरूप १५ इनके अतिरिक्त श्राठ गुण और हैं, जो राजा में होने चाहिएँ । जिस राजा की प्रज्ञा या बुद्धि इन गुणों से युक्त होगी, वही श्रादशौ राजा होगा--श॒श्रुषा --जानने की इच्छा, अ्रवश--दूसरों के विचारों को सुनना, प्रहथ--लेने योग्य बात को ले लेना, धारण--प्रहण की हहं बात को मुल्ला न देना, विज्ञान प्रत्येक बात को ठीक तरह समकः लेना, उह- समभी हुई बात कं गुणदोष पर सम्यक्‌ विचार, भपोह-- जा वात दोषदुक्त मालूम पड़े उसका परियाग क्षर देना, तच्वाभिनित्रेश-- जा बात ठीक मालूम पड़ उस सारभूत बात छा सखीकार कर लेना | कौरिस्य को अपने प्रादश राजा का इस प्रकार खरूपवर्यन करने से ही संतुष्टि नहीं हुई, जिस व्यक्ति को चातुरत्न साम्राज्य पर शासन करना हो, जिसके समथे हेमे से भ्रन्य सब राज- कय तत्वों का खयं समथैन हा जाता हा, उसके खल्प को झ्रौर प्रधिक विस्तार से स्पष्ट करना चाहिए-- ४ राजा को वाग्मी होना चाहिए। उसकी बुद्धि बहुत उन्नत दानी चाहिए। उसकी स्मृति बहुत तेज होनी चाहिए । उस्रका मन प्रत्यंत दृढ़ हेना चाहिए। उसे बलवान्‌, उन्नत- चेता नौर संयमी हना चादिए । उसे सब शिस्पों में निपुण होना चादर । शत्रु पर जब कोई दैवी या मानुषी प्रापत्ति झावे, तब उसे प्मपनी सेना द्वारा भ्रक्रमथ कं लिये तैयार होना चाहिए और जब शपने राज्य पर श्रापत्ति জাই অন্ধ उसकी रक्षा में समधे होना चाहिए । उसे उपकार के बदले मे उपकार भौर अ्पकार के बदले में श्रपकार करनेवात्ला (क कोन्भरे०६।१।




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