पुराणों का इतिहास | Puranon Main Itihas
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
234
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कर तीस इतिहास, की विक्ृति के कारण २.
' इस, प्रकार के विध्यक्ष; सत्य, उदास और प्रेरक भाथ' चंदहयस्थकारी पहं-
आात्पों को क्षक्े, यहीं लगे, क्योंकि इस सत्यधावों को मानते ते भारत का
औरव बढ़ता और अंग्रेजों हारा भारत को ईसाई बनाने, चिरशासन करने और
अंग्रेजीसंस्कृति के प्रसार में बाधा पड़ती, अतः उन्होंने विष्रीत और असत्यविश्वारों
का आश्रव लिया 4 अनेक कारणों से मैक्समूलर यूरोप में महान प्राज्य-विद्या-
विशारद (1060 1०हां&) माना जाता था, परन्तु वह प्रच्छल्लरू्प से मंकाले का
भक्त और अंग्रेजीसाआ्राज्य का महान् स्तम्भ था। सन् १८५५, दिसम्बर २८
को मैक्समूलर-मैकाले से भेंट हुई । इस समागम के अनन्तर सैब्समूलर गे अपनी
विज्ञारधारा भारत के प्रति पूर्णतः: परावतित कर ली जैसा कि उसने स्वयं लिखा
है-- “(मैकाने से मिलने के पश्चात्) मै एकं उदासीनतर एवं बुद्धिमत्तर मनुष्य
के रूप मे आक्सफोर्ड लौटा 1” स्पष्ट है कि क्या षड्यन्त्र रचा गया +
विकासयाव का स्रमजाल
प्रायः मूं से मूखं मनुष्य या बालकं भी यही सोचेमाकि लघु वस्तुसे
महान् वस्तु, कुद्रतम जीव से विशालकाय जीव विकसित हुये, अतः चार्ल्स
डाविन न जब १८५६ मे जीवो के विकासवाद काप्रतिपादन किया तो वहु
कोई बहुत महान् बुद्धिमत्ता का काम नही कर रहय था । यह् अत्यन्त साधारण-
বৃত্তি किबा सष्टि एवं इतिहास से पुणंतः अनभिज्ञ एक सामान्य व्यक्ति की
कोरी कल्पनामात्र थी, परन्तु उसके दस विकासवादं के सिद्धान्त को समस्त
विष्व मे, विशेषतः विज्ञानजगत् में, आरम्भिक विरोध के बावजूद एक बड़ा
भारी क्रास्तिकारी अनुसन्धान माना गया और इसमे कोई सन्देह नहीं कि आज
समस्त बुद्धिजीवीवर्ग पर, इस अतिशभ्रामक, घोर अवैज्ञानिक, मूखंतापूर्ण
मतान्ध्रसिद्धान्त का इतना प्रबल प्रभाव है कि अत्यन्त धासिक ईश्वरवादी
आस्तिक या अति बुद्धिमान आध्यात्मिक विद्वान् एवं योगी भी विकासवाद को
इश्वर से भी अधिकं परमसत्यके रूप मे आंख मंदकर अज्ञानवश मानता है ।
विश्व इतिहास, साथ-साथ भारतवषं के इतिहास मे विकृतियो का एक
प्रमुख कारण विकासवाद या सततप्रगतिवाद का भ्रामक मतद । इसके कारण
अनेक सत्यसिद्धान्तों का हतन हुआ और मनुष्य अन्धकार के महान् गर्त मे गिर
गया और इस अन्धतम अज्ञान से इसका उद्धार तब तकं नही हो सकता, जवं
लक की मनुष्य सत्य जानकर इस अवैज्ञानिक एवं असत्य कौ नहीं छोड़ देता ।
1. प् ऋचा किला ६0७ निपत् & 58666 0151 006 8 57786
0800৮ (0, जो, 1. ॥७ ४1 (1932).
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