निरुक्तसार निदर्शन | Nirukta Sar Nidarsana

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Nirukta Sar Nidarsana by डॉ. कुँवरलाल - Dr. Kunvarlal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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७ न ए पलककिलिशगा के निरुकत और याईक यास्क पर सर्वाधिक प्रभाव पड़ा जिस प्रकार पाणिनि पर पूर्वाचार्य वैयाकरण आपिशलि का सर्वाधिक प्रभाव था उसी प्रकार याह्क पर शाकपुणि का प्रभाव पड़ा शाकपूणि का निरुक्तशास्त्र भी यास्कीयनिरुक्त के प्रायः समान ही था परन्तु उसमें भेद मी पर्याप्त था । जिस प्रकार पाणिनि व्याकरण के प्रादुर्भाव से भ्रन्य प्राचीन व्याकरण लूृप्त हो गये उसी प्रकार यास्क के उदय से अन्य सभी प्राचीन निरुक्त लुप्त हो गये । इस सम्बन्ध में पं० भयवदत्त ने जो कुछ लिखा है उसका कुछ श्रंश यहाँ उद्धत करते हैं ।£-- दाकप णि समाम्नात निधण्टु का क्रम भी लगभग यास्कीय निधघण्टु सदुश ही था - यास्क (1) ब्रान्ल्रात्रिनाम 16 यास्क में भ्रप्ठित (2) उदकमू-इति सुखनाम 36 कक ५3 (3) दाइवान्‌ । सविता । विवस्वति । (4) विवस्वत । इति यजमान नाम 3116 18 के साथ यास्क में (5) यम । इति यज्ञनाम यजमान नहीं है । यारुक ने शाकपूणि के मत निरुक्त में सर्वाधिक उद्धृत किये हैं यथा भ्रयमेवार्निवेदबातनरइति दाकपूर्णि अग्नि इति शाकपूणि इत्यादि बहुशः उल्लिखित हैं । यास्क का बंदा-..यास्क एक गोत्र नाम था जिस प्रकार वसिष्ठ पारादायं कौशिक काइयप इत्यादि । निसंक्तकार यास्क का वास्तविक नाम भी अज्ञात है-- यास्कादिम्यों गोत्रे (अ्ष्टाध्यायी 21463) । श्रत यास्क एक गोत्र नम था इस गोत्र या वंदा में यारक नाम के श्रनेक पुरुष निष्चय पूर्वक हुये थे । एक यारुक जातूकण्यें के गुरु और व्यास पाराशयं के पितासह गुरु थे इस तथ्य का उल्लेख दातपथ ब्राह्मण (14141613) में हुआ है-- पाराशर्यों जातूकर्ण्याज्जातूकर्ण्पों यास्कात्‌ इन पाराशयं को प्राय विद्वान्‌ पारादार्य कृष्णदैपायन व्यास समभते हैं प्रौर जातूकण्यें व्यास के गुरु थे ऐसा इतिहासपुराणों से भी सिद्ध है परन्तु ६1) निरुक्तशास्त्र पं० मगवहत्त (पु० 26-27)




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