राजसन्यासी | Raj Saniyasi

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Raj Saniyasi by चन्द्र मोहन - Chandra Mohanरवीन्द्रनाथ ठाकुर - Ravendranath Thakur

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चन्द्र मोहन - Chandra Mohan

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रवीन्द्रनाथ टैगोर - Ravindranath Tagore

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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राजा का दरबार लगा हुआ था 1 सुवनेश्वरी मन्दिर के पुरोहित कार्य-वश राजा के दर्शन करने थे । रघुपति नाम था पुरोहित का । इस नयर में पुरोहित को चोन्ताई कहते हैं । भुवनेश्वरी देवी की पूजा चौदह दिन के वाद ऑझ्ाधी रात में चौदह देवताश्रो की पूजा के रुप में होती है । इस पूजा के समय एक दिन श्रौर दो रात को कोई भी घर से बाहर नहीं झा सकता । ः राजा भी नहीं । राजा यदि बाहर थ्राये तो उसे चोन्ताई के समक्ष भ्रथे दंड चुकाना पड़ता है । किवदन्ती है कि इस पूजा की रात्री में मन्दिर में तर बलि होती है । इस पजा उपलक्ष में सबसे पहले जो बलि चढ़ाई जाती है है वह राजभवन के दान-स्वरुप प्राप्त की जाती है । इसी बलि के लिए पशु प्राप्त करने के लिए पुरोहित राजा के पास झ्राया था । पूजा के लिए केवल चोदह रोज श्रोर शेष रह गये राजा ने खामोशी से कहा - इस साल मन्दिर में पशु बलि नहीं होगी समस्त सभासद श्रवाक रह गये 1 राजा के भाई नक्षवराय के तो सिर के वाल छड़े हो गये । मैं यह स्वप्न देख रहा हूँ क्या ? पुरोहित ने कहां ।




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