पेट्रोलियम | Petroliyam

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Petroliyam by फूलदेव सहाय वर्मा - Phooldev Sahaya Varma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४ पेटोलियमं से चुङन्द्र सुरित रष्वा जा सकता है । कपडे भ्रोर॒चमडे पर मोम चढ़ाने से उनमें जल प्रविष्ट नहीं कर सङ़ता, वेद्य॒त-यंम्नो मे पृथग्न्यासन (11512100 ) के लिए मोम का उपयोग होता हे। पेट्रोलियम से पिच प्राप्त होता है। एस्फाल्ट के स्थान में सड़क बनाने में, काले वार्निश बनाने मे, विदूयुत्‌ के पृथग्म्यासक के निर्माण में, अम्ल रखने की टंकियों और क्रोरीन के भभके के भीतरी भाग को पंट करने में पिच का व्यवहार द्वोता है । पेट्रोलियम का उपयोग ओऔषधों में भी होता है। पेट्रोन्लियम रेचक होता है । लिक्किड पराफीन के नाम से शुद्ध रूप में अथवा अ्रन्य पदार्थों के साथ मिलाकर रुचिकर बनाकर मल के निष्कासन के ल्षिए इसका व्यवहार होता है । पेट्रोलियम से आज अनेक रासायनिक द्वव्य तयार होते हैं। इनमें बंजीन, टोल्वोन, जाइल्लीन, एथिलीन, प्रोपिलीन, ब्युटिल्लीन प्रमुख हैं । इनमें कुछ पद॒र्थ असंतृप्त हाइड्रोकाबंन वर्ग के हैं । इनको सरलता से अल्कोहलों में परिणत कर सकते हैं । इस प्रकार, इनसे एथिल ्रल्कोहल, प्रोपिल अल्कोहल झोर व्युटिल अल्कोहल प्राप्त होते हैं। इन हाइड्रोकार्बनों को अन्य प्रतिक्रियाओं से कृत्रिम रबर ओर प्लास्टिक में परिणत कर सकते हैं। इनसे अनेक उपयोगी विलायक भी प्राप्त होते हैं । बंजीन ओर टोल्वीन से श्रनेक विस्फोटक पदाथ श्रौर श्रोषध बनते है | पेट्रोलियम से ग्लीसरिन भी प्राप्त हो सकता है | ग्लीसरिन एक महत्त्व का श्रौद्योगिक द्वव्य है। इसके अनेक महत्त्व के उपयोग हैं । इससे नाइट्रो-ग्लीसरिन बनता है जो एक भ्रबज्ञ विस्फोटक पदाथ है । इसे डाहनेमाहइट श्रोर कोंडांहट नामक सुप्रसिद विस्फोटक बनते हैं । अमेरिका में पेट्रोलियम-उद्योग-घन्धों का बहुत अधिक विकास हुआ है। वहाँ रासायनिक उद्योग-पन्धों में आधे से अधिक उद्योग-घन्धे पेट्रोलियम से संबंध रखते हैं । इसका कारण पेट्रोलियम की प्रचुरता ओर सस्तापन है। अमेरिका के अनेक विश्वविद्यालयों में पेट्रोलियम की विशेष शिक्षा दी जाती है और अनेक वेज्ञानिक और इंजीनियर पेट्रोलियम की शिक्षा प्राप्ततर विश्वविद्यालयों से निकलते ओर पेट्रोलियम-संबंधी उद्योग-धन्धों में लगते हैं । अमेरिका में श्राज सेकढ़ों कारखाने पेट्रोलियम से भिन्न-भिन्न पदार्थों का निर्माण कर उनका उपयोग दिन-दिन बढ़ा रहे हैं । भारत के लिए पटोलियम के उद्योग-घन्धे उपयुक्त नहीं हैं । न यहाँ पर्याप्त मान्ना में पंट्रोलियम ही पाया जाता है और न यह काफी सस्ता ही होता है। भारत में कोयले की प्रयुरता है। यद्द सस्ता भी होता है। कोयले से संबंध रखनेवाल्ले उद्योग-घन्धे यहाँ सरज्ञता से पनप सकते हैं । पर, ऐसा नहीं हो रहा हे । भारत की कोयले की अच्छी खानें विदेशियों के हाथ में हैं । भारत के उद्योग-घन्धों के विकास में अन्र उनकी दिलचस्पी नहीं रही है । इस कारण झावश्यक है कि भारत-सरकार का ध्यान इस उद्योग-घन्धे की ओर आकृष्ट हो । सबसे पहले कोयले का संरक्षण होना चाहिए । प्रत्येक आउ स कोयले का उपयोग होना चादिए। भारत में कोयला सीमित है । चेज्ञानिकों का अनुमान है अ्धिक-्ले-अ्धिक




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