कावूर | Kavoor

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हरिभाऊ उपाध्याय का जन्म मध्य प्रदेश के उज्जैन के भवरासा में सन १८९२ ई० में हुआ।

विश्वविद्यालयीन शिक्षा अन्यतम न होते हुए भी साहित्यसर्जना की प्रतिभा जन्मजात थी और इनके सार्वजनिक जीवन का आरंभ "औदुंबर" मासिक पत्र के प्रकाशन के माध्यम से साहित्यसेवा द्वारा ही हुआ। सन्‌ १९११ में पढ़ाई के साथ इन्होंने इस पत्र का संपादन भी किया। सन्‌ १९१५ में वे पंडित महावीरप्रसाद द्विवेदी के संपर्क में आए और "सरस्वती' में काम किया। इसके बाद श्री गणेशशंकर विद्यार्थी के "प्रताप", "हिंदी नवजीवन", "प्रभा", आदि के संपादन में योगदान किया। सन्‌ १९२२ में स्वयं "मालव मयूर" नामक पत्र प्रकाशित करने की योजना बनाई किंतु पत्र अध

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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परिस्थिति । ७ ~^ ^-^ ^-^ ~~~ ^~ ^~~-^~ +~ ^^^.~.~ ~ ~^ ~~~“ ~~~ ~~ ^~ ~ ~~~ ~+ ^~ - ~~ बैठेगा, अलबर्ट चुपचाप भाग निकला । उसके वहँँसि दबे-छुपे निकल भागनेपर पुरोगामी और अनियन्त्रित सत्तावादियोंम लड़ाइयाँ छिड़ी । उनमें पुरोगामियोंका पूरा पराजय हुआ । उनके नेताओंको अपने प्राणोंकी रक्षाके लिए. देशान्तरगमन करना पड़ा | इटलीके अन्य प्रान्तोंके सैनिकोंके द्वारा किये गये उपद्रव भी आस्ट्रियाकी सहायतासे दान्त किये गये । तब फिरसे चारों तरफ सनियन्त्रित रासनका उङ्का पिटने ट्गा । इस प्रकार ययपि अधिकारी ओर सैनिक पुरोगामियोके राजनेतिक सुधार-विषयक प्रयत्न विफल हुए, तथापि उन सुधारोंकी कल्पनाका बीज नष्ट न हुआ । फ्रेंचोंके संसर्गसे लछोक-स्तन्त्रताका जो भाव इटठलीमें उदय हुआ था उसकी जड़ बहुत गहरी जा चुकी थी। उसका उन्मूलन होना प्रायः असम्भव था। बल्कि ये भाव वहाँक्के सुशिक्षित समाजमें झपाटेसे फैल रहे थे। लेखन-स्वातन्त्रयका यद्यपि अत्यन्त सङ्कोच हो गया था तथापि, उस विपरीत परिस्थितिमें भी, उनका सङ्गोपन हो ही रहा था | नेपोखियनके समयकी पीटी-- उसके जमानेकी जनता--अब न रह गद थी । उसकी जगह नई पीदीका उदय हो रहा था । नेपोलियन और आस्ट्रियाके द्वारा किया गया अपने देश - का वण्टाढार यह नव पीढ़ी देख चुकी थी और उसके हृदय पर इसका असर भी बुरा हुआ था | अतएव उसके हृदयमें यही चिन्ता---यही घुन-- दिनरात रहा करती थी कि यह दुर्देशा, यह विपन्न अवस्था कैसे दूर हो ? १८२०-२१ ईंसवीके सैनिक पुरोगामी पक्षके ऋान्ति- कारक प्रयत्न असफल होने पर इटलीके अधिकांश राज्योंम प्रतिगामी शासन-पद्धतिने बड़ा जोर पकड़ा | अतएवं छोग खुलमखुल्ला राज- नैतिक सुधारोंका आन्दोलन न कर पाते थे | छाचार होकर वे गुप्त मण्डलियाकी स्थापना करके देशमें ऋन्‍्तिकारक विचारोंका प्रचार करने পা




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