भगवन् आदिनाथ | Bhagwan Adinath

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Bhagwan Adinath by विद्यानन्द मुनि - Vidhyanand Muni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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€ ই) शवनि्मसि' कै नामि पर भारतीय संस्टति के बन को दाजाटल मेंट बढ़ाने वालों को भमृत फर्तों शोर झांति वी छात्रा के बंबित होने से कोई नहीं रोफ़ सकेगा । जूता पहनने मे क्या वृषता पर कंटक नहीं रहेंगे? प्रॉस मू द वर गये वी प्रोर दौदने হাসি হয়া ঘন ম শীল सर्कंगे ?े विष ही घीजी অল “प्रदुदां छर जेदस चिपकाने से क्या वह मारक नहीं रहेगा ? টাল আরা লাগে मूख से वनस्पति सैलों को गब्य की स्पर्षा ঈী হিসনুল वाले कितने काल जियेंगे? मिय्यात्व वा यद प्रत्यशार प्लस है मूर रो गाद बनकर कितने फाल तेगा? घोर शय क दिवाषर्‌ कौ ऊचाष्यो तकः ने जनि यनि कथ गम द्म प्रकाश मानने का বুম্যাহন হন্টা হট ? অন পরিসর হাত ঈঃ গলি নী লিংধিল নন আালানহঘ, বিয়া হী ৮ 8 ভিন ग्राग्तुक् भारतीय सास्यिवा লৌহযী পদ পিত ছিল সতত পির टोस्ट, डब्सरोटी घ्ौर नेक पर उपमा देने से हैं কে হা পা, विज्ञान का प्राचाये, छत्तोस व्यजनों भ्रौर চটি রাস ल बुशल सूपपर भारत खाल उपधेड़पर হার है 2४७ জুরে अपने नाखूनों को डुबो रहा है। झृषि के दिद्वीर ऋण के (दमन होकर पि जीवन की घन्यभाग्या पवित्रः ई शुम পদ जा रहा है ? जिस जिद्धा पर भगवान के र१र>१ 7३७ ~ मांस रखते हुए उनका हृदय इस विर्सणद्र & ## #एकक दा नहीं हो जाएगा? जिन हाथों से विर्व करम सौभाग्य मिलता है उन्ही से प्रस्पृष्य मद ४ डक य নবী রী বাহন? হা বি হাস বি হার < হল श्रागम লাম নী ততাঙ্ধহ সালা অত দির 2 গল ৫ श्रौ भ्रमागों ! उठो, जागो झौर पिः, नन পপ, अन्न रत्न है, प्रजापति प्रादि ब्रह्य, ~ ~ = রি




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