सुब्रह्मण्य भारती | Subramanya Bharathi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
136
श्रेणी :
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प्रेमानन्द - Premanand
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रमेश बक्षी - Ramesh Bakshi
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शिक्षा : तिरुनल्वनी ओर वाराणसी 9
ओर उसी कं साथ उनकी आर्थिक वरवादी हा गई । टूटा हुआ दिल और खाली जेब लिए
उनकं पिता स्वर्गं सिधार । पीठ छुट गई उनकी पत्नी ओर छोटे छार वच्चे जो एक तरह
से अनाथ हो चुक॑ थे । अय्यर की पत्नी अपने छोटे बच्चों क॑ साथ अपने पिता के घर चली
गई | अकंले छूट गए भारती, जा जे १.५४ भी व्यवस्थित नहीं हो सके थे, और उम्र भी
अभी बीस तक नहीं पहुंची थी (6 कठिन क्षण में बनारस की उनकी चाची कृप्पम्माल
ने उन्हें अपने यहा आने का निमंत्रण दिया किप्पम्माल एक दयालु स्त्री थीं। वे और उनके
पति कृष्णशिवन धार्मिक प्रवृति क॑ थे। एक दिन उन्होंने घर छोड़ दिया था और पैदल ही
वनारस कौ तीर्थयात्रा पर निकल पड़ थ । उन्हाने जीवन कं शेप दिन उस पवित्र नगर में
ही गुजारन की साची धी । एट्यापुरम कं राजा की दयालुता का वान हाना चाहिए, क्योकि
उन्होंने ही एसी व्यवस्था की जिसके कारण वे लोग आराम कं साथ बनारस पहुच गए।
वहां पर उन्होंने एक सादा और धार्मिक जीवन बिताना शुरू किया। दूसरों की सहायता
करने बाले उनक॑ सरल और पवित्र स्वभाव ने बनारस के लोगों का ध्यान उनकी ओर खींच
लिया । आकपित हान वालो मं एक थ हनुमान घार कं शैव मठ कं मालिक एक ब्रह्मचारी ।
उन्हाने करृष्णशिवन का अपन सहयोगी कं रूप मं आमत्रित किया | कुछ दिनों कं बाद जब
कि ब्रह्मचारा जी का अपनी मृत्यु का पूर्वज्ञान होने लगा, उन्होंने एक वसीयत के जरिए
कृष्णशिवन को अपने मठ का उत्तराधिकारी बना दिया। मठ का काम बहुत ही परिश्रम
का था लेकिन उसके बावजूद शिवन और उनकी पत्नी क॑ लिए रुचिकर था। शिवन ने
मठ में नटराज को एक मूर्ति स्थापित कर दी । उन्होन अपना जीवन नटराज की पूजा करने
तथा वनारस पहुचन वाल तीर्थयात्नियों का पूजा आदि मं मदद दन म गुजारा । चिन्नस्वामी
की दरिद्रता में मौत हो जाने कं बाद कृप्पम्माल ने भारती से कहा कि वे बनारस आ जाएं
और अपनी शिक्षा जारी रखे। उनका ख्याल था कि अगर वे अपनी पढ़ाई पूरी करके डिग्री
प्राप्त कर लें तो कोई स्थायी नौकरी मित्र जाएगी और सुविधापूर्वक चेल्लम्माल क॑ साथ
परिवार का भरण पोषण हो जाएगा । याजना अच्छी थी । पटाई आर आवास की समस्या
कं हल हान कं साथ साथ एक वात यह भी थी कि बनारस की यात्रा उनकी साहसिकता
की भूख का भी तुष्ट करती,
उन्होंने सेट्रल हिन्दू कालेज में नाम लिखवाया। वह कालेज इलाहाबाद विश्वविद्यालय
स संबद्ध धा । प्रवश परीक्षा उन्होंने प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की, जब कि उन्हें दो नयी भाषाएं,
संस्कृत आर हिंदी नए सिरे से पढ़नी पड़ी थी। इससे यह भी सिद्ध हो गया कि वे कंवल
स्वप्न देखन वाले ही नहीं थे बल्कि उनमें किसी उद्देश्य के लिए शीघ्र ही सक्रिय होने की
भी क्षमता थी। बच्चे की सफलता से चाचा और चाची दानों ही बहुत प्रसत्र हुए लेकिन
इसके बावजूद भारती जैसे मनमौजी लेकिन प्रतिभाशाली/बालक को हर अवसर पर अपने
अनुकूल बना लेना आसान नहीं था। भारती के बाल कटाने, मूंछें रखने और उत्तरी भारत
के फैशन क॑ अनुसार शानदार पगड़ी बांधने से शिवन को निराशा हुई । उनका ख्याल था
कि वे सब चीजें बेकार हैं और इनसे पता चलता है कि बालक के मन में धार्मिक भावना
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