नरकुंड में वास | Narkund Mein Vaas

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Narkund Mein Vaas  by जगदीश चन्द्र - Jagdish Chandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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थीं। कुछ ही देर में सामान से लदी-फदी सवारियाँ बड़े गेट से मुसाफिरखाने में आने लगीं । कोचवान सवारियों को घेरने लगे, “लालाजी, कहाँ जाना है। बाबूजी, पेशावरी ताँगा है ।” कोचवान एक ही साँस में इतनी सड़कों, मुहल्लों और बाजारों के नाम ले रहे थे कि समझ पाना कठिन था। कई सवारियाँ किराये का मोल-तोल करती हुई तकरार पर उतर आती थीं। सवारियों को ले कोचवान आपस में भी उलझ पड़ते धे। एक कोचवान दो सवारियों का सामान अपने ताँगे में रखने लगा तो दूसरे ताँगेवाले ने उसका दामन पकड़ते हुए रोब से पूछा, “कहाँ ले ज्य रहा है इनका सामान ?” “क्यों तू इनका मामा लगता है ?” पहले कोचवान ने अपना दामन छुडा उसका हाथ झटक दिया । “मामा लगता होगा तू | इनसे पहले मैंने बात की है ।” टूसरे कोचवान ने जबर्दस्ती उनका सामान उठा लिया। धीर-धीरे सवारियों से लदे-फदे ताँगे स्टेशन क॑ अहाते से बाहर निकलने लगे। मेलगाडी भी प्लेटफार्म से खिसकती हुई आगे बढ़ गई और उसकी गड़गड़ाहट ओर धमक क्षण-प्रतिक्षण कम हो खामोशी में ड्ब गई। मुसाफिरखान में भीड़ बढ़ती देख काली ने चाय का आखिरी घूँट जल्दी से भरा और खाली कप चायवाने के पाँव के पास रख बेंच पर जा बैठा। एक व्यक्ति को वेच की ओर आता देख काली पसरकर बैठ गया और पीठ पीछे फट्टे से टिका दी। बेंच पर अपना कब्जा सुनिश्चित बनाने के लिए उसन टॉंगें आधी पसार ऊपर चादर फैला दी। प्लेटफार्म से यलगार करते हुए भिखारी और भिखारिनें मुसाफिरखाने में घुस आए | उनमे बूड़े, बुढ़िया, जवान और बच्चे शामिल थे। वे अलग-अलग गिरोहो में बेंटकर दिनभर की कमाई का हिसाब जोड़ने लगे | वे कभी -कभार आपस में उल्झ पडते और उनमें तकरार तक की नौवत आ जाती | নত লুষ্ট লিব্নাহী জীত भिखारिनों « अपनी मैली-कुचैली और फटी-पुरानी चादरें फैला डी ताकि तडके आने-जानेवाली गादियों में भी भीख माँग सकें। लेटने से ले उन्होंने पैसों की गुत्यियों को अच्छी तरह डटोला | औरतों ने अपनी-अपनी गत्थी को नेफे मे बाँध लिया और मर्दों ने उन्हें फटी कर्ती की अंदरूनी जेबों में बकसुए से सी दिया । कुछ नौजवान भिखारी एक कोने में बैठे ताश फेटते हुए जुआ खेलने लगे और कुठ स्टेशन कं वाहर रेलवे गड पर ठेका शराब देसी की ओर बढ़ गए। नौजवान भिखारिनो ने अपनी चादरें बूढ़ी भि: रिनों के बीच बिछा दीं और आपस में दवी आवाज में बातें करने लगीं। कभी-कभी वे मुँह पर हाथ रख हँसी को दबाने के लिए आपस में लिपट जातीं | काली भी निश्चित हो बेंच पर लेटा था कि प्लेटफार्म और मुसाफिरखाने के नरककुंड में बास / 17




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