तुलसी की वंदना | Tulsi Ki Vandana

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Tulsi Ki Vandana by सुमन सक्सेना - Suman Saxena

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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राम काव्य वंदना परंपरा - संस्कृत काव्य का प्रारँभ रामायण सै होता है 1 वा न. टन रामायण राम काव्य परंपरा का आदि ग्ँथ है 1 पृ तत काव्य में थि उ राम काव्य है रामायण मैं प्रारंभ मेँ कोई स्तृत्ति नहीं कि इंत तमय इस लोक मैँ गुणी: और टूढ़ प्रतिज्ञा व्याति कौन है 101 : स्वाध्यायनिरत तःपस्वी वा्विदाँ वरभ नारद परिप्रच्छ वाल्मीकि पुड गवम 11 कोन्वस्मिन सापते लौोकेगणवान्‌ काय वीर्यवान धर्पशश्य कृत्तक्षेच सत्पवाफ्यो टुदूबत: 1। वा. बालकाण्ड 1, 2 पउभघरियँ : आचार्य चिमल सर्कित 8 कवि के अनसार सन्‌ 0060 की रचना 1 सँ0-डा0 हर्मन पाकुत यँध परिषद पण्सीन5ठ 1962 ह मत्त विहार्ण- प्रँगलपु सर-किन्नरोरण-दणवट्ठ -भवशणिन्टवन्दपा शिमहिय उसहे जिणतरवसह, अवसप्पिंणि आइसिव्थपटँ 111 11 अधिय लिजियकसा ञपुण बच्झव संभव भवधिणासँ | अभिनन्दर्ण च पुमई पठ्मॉभ , पउम सच्छायँ 11 2 11 | तिजगुतम मुपास ,ससिप्प्भ जिगतर कमुमदन्त | अह सीयल मुणिन्दें ,सेय चेव वसुपुज्जे 11 5 11 चिमलँ तहा अन्त पथ धम्चासय जि सन्त | मय कसा यमह्ण , अरँ । जय हि. महाभाणं ।। ५ | थक छ्द पृ ं सि ग(तुधरय 'तियमनाहँ | सम थ तिस्थि समप्पन्स प्‌ सैशि तह य पास , उरणमहाफाणिम पर 'चिलीोणरयपल , लिह यण्प्रिवन्न्टिय भरे अन्न थि जे महा रिसी , गणहर अणगार लट्माहपी मण-वफा -कायाप्स , सच्ते सिरसा नमसाधि [1 7 11 हि विधा, के, शशि वध सिदि्धियाँ प्राप्त करने वाले हा ध, देव, किन्नर, ना अतुर्प र एव ससह धारा. जिन वर में वक्भू के स्सान ब्रेष्ठ और अर्व्त | ॥. अवसर्पिण काल के दो मय लिभाग 8 काल मैं हो पे “याम यह को -कषायाँ पर चिजप हि प्त करेंने वाले अजित धारण नहीँ करने वाले संभव नाश के समाम पर काफ्न्त वाले पट्पपभ कौ पैक मैं उत्तम [शतर शा ममदन्त सु को- मुनियों मैं इन्द्र पर लिमल एवं अनन्त की - धर्म के आश्रपरम ध्ँ कौो-रागा आन्तरिक शरनओं के उपर 'चिजय प्राप्त करने वाले शािन्त .. कौ -कबायनाश करने वाले कन्थ की शा की जीतने वाले तथा हा ऐपचर्य 2 न पनन अरफी- जन्ममरण के प्रवाह का नॉश रने ताले मड्लिको-सवतधा री: कि देवों राम की दा. जनके शास घटी ऐसे _ ते नाण की बड़ी देनी




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