प्राचीन भारतीय आर्थिक विचारों के कतीपय पक्ष | Some Aspects Of Ancienindian Economic Thought

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Some Aspects Of Ancienindian Economic Thought by प्रकाशचन्द्र जैन - Prakashchandra Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१2 | ए लात का अन्तगंत , का था पशुपालन, व्यप, अन्म, प्च, समना बने हु म्पद নিজ হলি প্রাপি | एज ৯ पवश तथा सम्य शक्ति के संचालन की बात शीः ६ कही' गयी है । व्याज, ऋण आदि की किया জী भी हसी हे सथ एम्ब कर दिया गया है | शनी ति मेँ स्पष्ट का गया है 'क्ि उधार कैसा कॉचि', वाणिज्य, पहपाछन ঈ बात शारत्र के आंत है | सामान्यतः बात के चार विभाग मात्र जाते है। राथि, वाणिज्य, पशुपाठ़न जाए इनके अन्तर्गत उचाएका कैन दम । परन्तु हरमे पशु पालन रूप विजय प्रहत्व प्रदात किया गया है । वागे च्छक कर्मान्स वर्धात्‌ शिल्पकारोी ले भी वातं के ष्ण जोट विया गया । का उब दैवी पराण শিলা तै `हे । यथा गौ देवी पश्यन कणि तथा 'शित्मकारी में छो हये छोग वाततीहिउपासक है | वाञ्च! नयं ঘন ঈশা জাত दै इप्‌ में पति तित हो गयी है औप उच्के व्यवस्था प धातं का दै पार्‌ हे महल्थ है । वातत হাত का विभाजन नि्रारित है । करणः कै न्तगत कार्य करना पहला ४ | शक्तौ क अदस की अपने व्यवक्षाय में ऋफा ले नहीं हततत । अणति कर्म कान बाड़े व्यि कौ कपी জা তলা नहीं प्राप्त हीती | कामम्व॒क के कयनाउसा17 जब बाताँ का 'चिताश हो जाता है,तो' संक्षार मरी हुयी सारे भायै लगता है। बॉल्वीकि एा्मायण के ज्यौध्याकाण्ह भ॑ राम मरत से पृ है, तुम्हारे आजित जो छोग कीच तथा गौरदाण पर লিল कतै हेऽ वै वादा ॐ अंसार জীবন আদল ক इश्ता प्यक पृष्ठ एहै है ?* के द्वारा ही मानव झयृह के कार्यों, ल्क्य भ राया के कर्वव्याँ को भी निहपित कक्षया र । शत्यवादी, पव्चित्र तथा किले कार्य कै पुति शीघ्र निणय हैते बाला होना चाहिये বউ প্রা তান एवं घद का शही-सही ज्ञान हौना जावश्यक श्च |




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