युग - दीप | Yug Deep

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Book Image : युग - दीप  - Yug Deep

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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युग-दीप १२९ में कब हारा, मै कब हारा, सागर में गोते खा मेंने पाया सही किनारा ! शूलों को भी फूल बनाते; असफलता को धूल बनाते; जीवन की अनुकूल बनाते; दिवस-रात के पंखों पर उड़ भूपर स्वगं उतारा ¦ प्राणों का उल्लास चदाकर ; पतमड़ को मधुमास बनाकर ; महा-तिमिर में आस जलाकर वर्तमान को নী भविष्य में मैंने जाग पुकारा ! हार जीत का आमंत्रण है, गिरना तो चलने का गुण है , _ दौड़ पहुँचने का साधन है; आओश्रो, चलो, उधर देखो, उग उठा ज्ञितिज से तारा ! अभी मुझे चलना है बाकी , तुमको भी ते चलना बाकी ; डरो न यदि निबेलता भक; नर को है देवत्व पूजता वहाँ जगत ही न्यारा! में कब हारा, में कब हारा-- सागर में गोते खा मेंने पाया सही किनारा! बारह




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