युग - दीप | Yug Deep
श्रेणी : काव्य / Poetry
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
70
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)युग-दीप
१२९
में कब हारा, मै कब हारा,
सागर में गोते खा मेंने पाया सही किनारा !
शूलों को भी फूल बनाते;
असफलता को धूल बनाते;
जीवन की अनुकूल बनाते;
दिवस-रात के पंखों पर उड़ भूपर स्वगं उतारा ¦
प्राणों का उल्लास चदाकर ;
पतमड़ को मधुमास बनाकर ;
महा-तिमिर में आस जलाकर
वर्तमान को নী भविष्य में मैंने जाग पुकारा !
हार जीत का आमंत्रण है,
गिरना तो चलने का गुण है ,
_ दौड़ पहुँचने का साधन है;
आओश्रो, चलो, उधर देखो, उग उठा ज्ञितिज से तारा !
अभी मुझे चलना है बाकी ,
तुमको भी ते चलना बाकी ;
डरो न यदि निबेलता भक;
नर को है देवत्व पूजता वहाँ जगत ही न्यारा!
में कब हारा, में कब हारा--
सागर में गोते खा मेंने पाया सही किनारा!
बारह
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