बीसवीं शताब्दी (पूर्वाद्ध) के महाकाव्य | Beesvee Shatabdi (Purwarddh) Ke Mahakabya
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
350
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बोसवीं' शताब्दी के महाकाब्य
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शुक्ल जी कहते है कि “जिस प्रकार श्रात्मा कौ मुबतावस्था ज्ञानदशा
कहलाती है उसी प्रकार हृदय की वह मुक्तावस्था रसदद्या कहलाती है।
हेदय की इसी मुक्ति की साथना के लिये मनुप्य की वाणी जो शब्दविधान
करती आई है उसे कविता कहतें है ।”
श्री जयशंकर प्रसाद जी काव्य को आत्मा की संकल्पात्मक श्रतुभूति
बतलाते हे |
इस प्रकार हम देखते है कि नवीन कलाकार भी एकमत नहीं हैं।
कोई कविता का स्वरूप उसका प्रानन्दायक होना, कोई मनोवेगमूलक होना
मानते है। सुश्री महादेवी के दब्दों में “कविता मनुष्य के हृदय के समान
हो पुरातन और विशाल है, इस हेतु श्रब तक उसकी कोई ऐसी परिभाषा
नही बन सकी जिसमें तकं-वितकें की सम्भावना न हो।” यह बात तो
निरविवाद है कि विचारों में परिवर्तन हुआ करता है। भ्रतएव परिभाषाश्रों
में भी पर्याप्त विभिन्नता दिखलाई पड़ती है किन्तु भाव में परिवर्तन नहीं
हुआ करता । सभी प्राणी-चाहेँ वे भारतीय हों ग्रथवा विदेशी-अपने प्रिय के
वियोग में दुःखी होते हे श्रौर उनके मिलने पर प्रसन्न होते हैं। श्रत: भाव
सर्वेदेशीय श्रौर स्वबकालीन एकरस रहता है और यही मनुष्य को मनुष्यत्व
प्रदान करता हैं। श्रतएवं काव्य में भावपक्ष का महत्त्व श्रधिक हैं। कला का
काम भावों का उहीपन करता श्रौर उसमें सौन्दर्य लाना है। शब्द, छन्द,
প্রলাহ। गुणु श्रादि कला के वाह्य उपादान हैं ।
अस्तु, हम इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि काव्य में भावपक्ष और कलापक्ष
का पणं समन्वय रहे । श्रतः हम कह सकते है कि भावप्रधान रसमग्न करने
वाली रुचिर रचना काव्य है। इस परिभाषा में भावपक्ष और कलापक्ष
दोनों का समन्वय होता है क्योंकि भावपक्ष द्वारा कवि अदने विचारों को
पाठकों में संचारित करता हैं जिससे कि पाठक तन्मय हो जाते हैँ और रुचिर
स्चना से कलापक्ष ग्रा जाता है जिसमें श्रपने भावों की प्रभिव्पक्ति सभ्यक्
प्रकार से हो जाती है ।
काव्य के विभिन्न रूप
भारतीय परम्परा के अनुसार संस्कृत के आचार्यों ने काव्य के दो भेद
कहे हें--दृश्य काव्य एवं श्रव्य काव्य ।
दृश्य काव्य बहे काव्य कहलाता हैं जिसका आनबूद नेत्रों द्वारा प्राप्त किया
জা জনতা ই সী তন काव्य वह काथ्य है जिसका आनन्द श्रोत्रों द्वारा लिया
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