बीसवीं शताब्दी के महाकाव्य | 20th Shatabdi Ke Mahakavya

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
20th Shatabdi Ke Mahakavya by डॉ. प्रतिपालसिंह - Dr. Pratipal Singh

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about डॉ. प्रतिपालसिंह - Dr. Pratipal Singh

Add Infomation About. Dr. Pratipal Singh

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
हतीय श्रध्याय श्रव्य कांब्य भारतीय समीक्षापद्धति में श्रव्य काव्य के तीन भेद किये गये हूं - गद्य, पद्य तथा चम्पु । गाधुनिक काल में पद्य में दो प्रकार की रचनाये देखने को मिलती है--- प्रबन्ध तथा निर्बन्ध । प्रवन्ध के दो भेद किये गये है--महाकाव्य तथा. खण्ड- काव्य । महाकाव्य का क्षेत्र विस्तृत होता है जिसमें जीवन की श्रनेकरूपता दृष्टिगोचर होती है । खण्डकाच्य में पूर्ण जीवन का विवेचन करके केवल एक ही घटना को मुख्यता दी जाती है । निर्वन्ध कली के श्रन्तर्गत मुवतक, गीत तथा प्रगोत तीन प्रकार की रच तायें देखी जाती हैं । यद्यपि हमारे साहित्य में छन्द-बद्ध मुक्तक श्रौर गीतों का प्रचलन प्राचीन काल से चला श्रा रहा है, किन्वु प्रगीतों की रचना इंगलिश काव्य के लीरिवस (1- ह 7 0 5) के ढंग पर हिन्दी में होने लगी है 1 तीसरा विभाग चम्पू है जिसमें गद्य एवं पद्य दोनों प्रकार का मिश्रण रहता है, जैसे गुप्त जी की “'यज्नोधरा” 1 महाकाव्य के लक्षण शास्त्रीय परम्परा--महाकाब्य के लक्षणों का वन दण्डी ने काल्पुररार में किया है, किस्तु साहित्यदर्पणाकार विश्वनाथ ने इसका विस्तार हैं 9 वर्णन किया है । वह इस प्रकार है”- कि १. सर्गवन्धो महाकाल्य॑ तत्रेको नायक: सुरः । सदंश: चत्रियों वापि थीरोदात्तयुणान्वितत: ॥ एकर्चशभवा भूपा: कुलजा वहवोधपि वा | ूंगारवीरशान्तानामेकोउद्ली रस इष्यते 1 श्रंगानि सर्वेअपि रसा: सर्वे नाटकसन्धय: | इतिदासोद्भवं दत्तमन्यद्ा सज्जनाश्रयस्‌ हा प्त्वारस्तस्य वर्गा: स्युस्तेष्वेक॑ च फर्ल भवेत्‌ 1 ादी नमस्क्रियारीरवा वरतुनिर्देश एवं वा ॥ क्‍्वचिज्निन्दा खलादीनां साय शुखुवणुतम एकयृत्तमये: पर्य रवसामे5न्यद्वरापी: 1! लाति स्वत्पा नातििं दीपा सर्गा झाधिका इद 1 की नानावृत्तसव: क्वापि सर्ग: कश्चन टश्यते ॥ (शेप ध्रगले पृष्ठ पर)




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now