श्री राम चरित मानस की भूमिका | Sri Ramcharitmanas Ki Bhumika
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
35 MB
कुल पष्ठ :
539
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शिक्षा भर व्याकरण ই
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किसीकी भाषा तो रह नहीं गयी थी। ऐसी ही अवश्यामें गोखामी
तुरुखीदासजीने भमी अपनी कविताकी भाषा देश काल और
परिखितिके अनुसार अधिक्रांश अवधी, कुछ ब्जभाषा, कहीं-
कहीं बुन्देलखएडी और कहीं स्पशेमात्र भोजपुरिया रखी है ।
१-राय सुभाय मुकुर कर लीन्हा, बदनु विलोके सुकुट सम कीन्हा
छ्वन स्प भय तितत केसा, मनं जरटपनु अक्त उपदेसा
चप जुब्राज राम कद्ध देहू, जीवनं जनमु लां किन लेह ।
( अवधी )
२-अवलोकि है| सोच विभोचनकों ठगिसी रद जे न ठगे घिक से
(अजभाषा )
-ए दारिका परिचारिका करे पालवी करुमामई
अपराध छुमिबो बोले पठये बहुत ढ। ढीज्यो दईं
( बुन्देलखण्डी )
9 -सटड सदा तुम्ह मोर मरायत्र, कद्दि अस कोपि गगनपथ घायल
( भेजपुरिया )
मानसकार गोखामीजीके समयमें आजकलकों खड़ी बोली
जो चस्तुतः प्रान्त विशेषकी प्राकृत थी, संस्कृतके पदपर नहीं
आयी थी। यही बात है, कि गोखामीज्ञीने खलसख्थलपर जहां
भाषाकी चर्चा है, एक ओर “संस्कत''का विचार किया है. तो
दूसरी ओर “प्राकृत” “साषा” “आस्य” वाणी आदिका प्रयोग
किया है ।
“का भाषा का संस्कृत, प्रेम चाहिये सांच,
काम् ले अते कामरी, का ले करे कमांच | [ देह|बली ]
“साषा निबन्धमति मंजुलमातने।त
“आषा बद्धमिद चकार तुलतादासः
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