सुमित्रानन्दन पन्त और उनका आधुनिक कवि | Sumitra Nanad Pant Aur Unka Aadhunik Kavi

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Sumitra Nanad Pant Aur Unka Aadhunik Kavi by तारकनाथ बाली -Taraknath Bali

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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সি श হারার এরিক পাশ স্পট টি উপ পপ স্পট পা পপর সাপ কাস ममम मि + वेचित्रय, प्रतीक विधान, विशेषण-विपर्यय, विरोध-चमत्कार, मानवीकरण, अन्योक्ति-विधान, हैं | व्यापक श्रर्थ में छायावाद का प्रयोग रहस्यवादी गीतौ के लिए, भी किया जाता है । | हि ऊपर गिनाई हुई छायावादी शैली की सभी विशेषतार्ण पन्त मं मिलती हैं । ( १ ) लाज्षणिक वेचित्र्य-- “्ुरभि-पीडित मधुपो के बाल तड़प, बन जाते हैं गुख्ार,” ( मौन-निमन्त्रण ) ( भँवरे ही गुज्ञार बन जाते हें = भवरे गुज्लारने लगते ই) (२) प्रतीक विधान- “उधा का था उर में आवास” ( आँसू! की बालिका ) ( उषा ऊ दिव्य माधुरय्य ) “सरल मोहौ का शरदाकाश घेर लेते घन, घिर गम्मीर” ( अनित्य जग ) ( धन = चिन्तार्पँ ) (३) विशेषण विपपेय-- “शान्त, स्निग्ध; ज्योत्सना उज्ज्वल ! अपलक, अनन्त, नीरव भूतल !?? ( नौका विहार ) ( शान्त ज्योत्सना = रानि के समय मनुष्य, पशु, पकती सभी शान्त दै । नीरव-मूतल = धरती शान्त नहीं, धरती के रहने बाले शन्त ह । ) (४ ) विरोध चमत्कार-- “तीरवतार” उषाकाल की श्रनिर्वचनीय शान्ति श्रौर हषं गिरा दो जाती है सनयनः नयन करते नीरव भाषण ‰ ( स्नेह )




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