छायावादी कवियो के काव्य-चिन्तन के सन्दर्भ में उनके काव्य का अध्ययन | Chhayawadi Kaviyon Ke Kaavya Chintan Ke Sandarbh

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Chhayawadi Kaviyon Ke Kaavya Chintan Ke Sandarbh by रानी रीता त्रिपाठी - Rani Reena Tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हैं , वह न लक्षणा है, न तात्पर्युवेअनुमान, न रस रूप, न अलकार्य ,न अर्थापत्ति, न अलकार रूप। बल्कि यह सबसे भिन्‍न पद, वाक्य व वर्ण में ही सुन्दर लगती हे। उनके अनुसार - मुस्या महाकवि गिरामलकृति भूतामपि, प्रतीयमानच्छायैषा भूषा লঙ্ন আমিল। £€ इस तरह ध्वानिकार आचार्य आनन्दवर्धन अलकार के बढते हुए प्रभाव को समाप्त करना चाहते थे। अलकार की अगभूतता के लिए आनन्दवर्धन दारा विये गये तकं निश्चित सूप से प्रभावशाली है। गुण सिद्धात की भी यही स्थिति हे। रस पर आश्रित रहने वाला गुण स्वय स्वतन्त्र नही हे। इसे स्पष्ट करते हुए वे लिखते हे - ये रसयाङिनाो धर्मां शोयादिव आत्मन उत्कर्षं हेत व्तस्युरचल स्थितयो गुणा 11“ इस तरह इनके विचार से यह स्पष्ट होता है कि रीति पद रचना के रूप में गणो पर आग्रित होकर परोक्ष में रस को प्रकट करने के लिए परिस्थिति का निर्माण करती है। अलकार गुण रीति के विवेचन से यह स्पष्ट होता है कि यह काव्य प्रधान तत्व नही हे। इसलिए ध्वनिकार इन्हें काव्यात्मा नहीं मानते हैं। ध्वानवादी अलकारों के बढते हुए महत्त्व को समाप्त भी करना चाहते थे। आनन्दवर्धन इसमें सफल भी हुए। वे अलकारों का महत्त्व तब स्वीकार करते हे जबर उसर्मे ये बार्ते माजूद हो (रस की प्रधानता का ध्यान {2 अलकारों का अगी रूप में प्रयोग {3{ यथावसर्‌ ग्रहण व त्याग ३4३४ प्रयोग की अतिशयता($ प्रयोग के आवश्यक होने परर इसे अप्रधान मानना। इस विचारधारा का तथ्य यह है कि अलकार की महत्ता ध्वनि के अन्तर्गत तभी हो सकती है, অন वे स्वार्थं को छोडकर उसके निमित्त प्रयुक्त हो। डां सिह के शब्दों में - अलकारों का सम्बन्ध अर्थ रचना से है। अर्थ रचना के लघ॒तम एव वृहत्तम स्वरूप को निर्दिष्ट करके उसे सरल, वक़, सशलिष्ट, सादृश्य गर्भित आपि प्रकार को ध्वनि के अन्तर्गत समाविष्ट किया। 19 अत ध्वनिकार रस को ध्वनि की आत्मा मानते है। तेकिन यदि काव्य ध्वनि पर आधारित हे तो ध्वनि की आत्मा रस ही हे। इस सम्प्रदाय के ध्वीनकार आचार्य अभिनव गुप्त भी इसका नवीनीकरण करते हं। इन्होंने सभी विवादों को समाप्त करके ध्वनि कों प्रतिष्ठित किया हे




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