अम्बेडकरवाद के संदर्भ में काशीराम का दलित आंदोलन | Ambedakarawad Ke Sandarbh Men Kashiram Ka Dalit Aandolan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
43 MB
कुल पष्ठ :
415
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अतीत की घटनाओं मे अनेकों तथ्य सम्भव हो सकते हैं । परन्तु इतिहासकार
के पास सम्पूर्ण तथ्य नहीं हो पाते है । हो भी नहीं सकते हैं क्योकि ना तो वह
सलामी लेने वाला राष्ट्रपति है और ना हीं कोई आकेस्ट्रा का डायरेक्टर ।
इतिहासकार क्थ्यो की उस भीड मे स्वय शामिल होता है । जिसमे से उसे अपने
तथ्यों का चयन करना है । इसके त्थ्य भीड की भाति है उसमे से इतिहासकार को
कुछ त्थ्यो का चयन करना है 19वीं सदी के महान चिन्तक 'मि0 ग्राउप्रिन्ड' ने
'हार्ड टाइम्स' मे लिखा था कि - हमें सिर्फ तथ्य चाहिये जीवन मे हमे सिर्फ तथ्यों
की आवश्यकता है |” इन्हीं की बात को आगे बढाते हुये 49वीं सदी के चौथे
दशक मे 'राके' ने इतिहास को उपदेशात्मक बनाने के विरोध मे कहा था कि -
“इतिहासकार का दायित्व इतिहास को सचमुच उसी रूप में दिखाना है जैसा कि
वह सचमुच था ।” परन्तु विज्ञानवादियो ने यहा इतिहास से बुद्धि को गायब कर
दिया | 'कैची और गोद' शैली के इतिहास का अनुमोदन किया |
यह भुला दिया गया कि खन्डहर तभी बोलते हैं जब कि उन्हें बुलवाया जाता
हैं । जैसे ही इतिहासकार बोलवाता है वैसे ही हमारे खन्डहर बोलते हैं अन्यथा वह
मौन साधे रहते है | त्थ्य और इतिहास के मध्य मे इतिहासकार आता है । प्रख्यात
दाशनिक 'हाउसमान' ने इस ओर ध्यान दिलाते हुये बताया कि - 'यथात्थ्य होना
एक दायित्व है कोई गुण नहीं' । अपने इतिहास को इतिहासकार तथ्यपरक रखने
का कार्य तो स्वय ही करेगा । यहा 'इतिहास को एक ऐसी आरी के रूप मे देखा
गया है वस्तुत जिसके तमाम दात गायब है । इन गायब दातो का समायोजन
इतिहासकार को करना होता है |
अर्थात इतिहासकार अपने तथ्यों का समायोजन कर उन्हें आवाज देने का
प्रयास करता है । उसके त्थ्य पवित्र है और इसमे वह कोई बदलाव नहीं कर
सकता है । परन्तु तथ्यों का चयन करना इतिहासकार के लिये एक बड़ी समस्या हो
जाती है | इस चयन की समस्या से निपटने के लिये इतिहासकार उन्हीं तत्वों को
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