अम्बेडकरवाद के संदर्भ में काशीराम का दलित आंदोलन | Ambedakarawad Ke Sandarbh Men Kashiram Ka Dalit Aandolan

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Book Image : अम्बेडकरवाद के संदर्भ में काशीराम का दलित आंदोलन  - Ambedakarawad Ke Sandarbh Men Kashiram Ka Dalit Aandolan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अतीत की घटनाओं मे अनेकों तथ्य सम्भव हो सकते हैं । परन्तु इतिहासकार के पास सम्पूर्ण तथ्य नहीं हो पाते है । हो भी नहीं सकते हैं क्योकि ना तो वह सलामी लेने वाला राष्ट्रपति है और ना हीं कोई आकेस्ट्रा का डायरेक्टर । इतिहासकार क्थ्यो की उस भीड मे स्वय शामिल होता है । जिसमे से उसे अपने तथ्यों का चयन करना है । इसके त्थ्य भीड की भाति है उसमे से इतिहासकार को कुछ त्थ्यो का चयन करना है 19वीं सदी के महान चिन्तक 'मि0 ग्राउप्रिन्ड' ने 'हार्ड टाइम्स' मे लिखा था कि - हमें सिर्फ तथ्य चाहिये जीवन मे हमे सिर्फ तथ्यों की आवश्यकता है |” इन्हीं की बात को आगे बढाते हुये 49वीं सदी के चौथे दशक मे 'राके' ने इतिहास को उपदेशात्मक बनाने के विरोध मे कहा था कि - “इतिहासकार का दायित्व इतिहास को सचमुच उसी रूप में दिखाना है जैसा कि वह सचमुच था ।” परन्तु विज्ञानवादियो ने यहा इतिहास से बुद्धि को गायब कर दिया | 'कैची और गोद' शैली के इतिहास का अनुमोदन किया | यह भुला दिया गया कि खन्डहर तभी बोलते हैं जब कि उन्हें बुलवाया जाता हैं । जैसे ही इतिहासकार बोलवाता है वैसे ही हमारे खन्डहर बोलते हैं अन्यथा वह मौन साधे रहते है | त्थ्य और इतिहास के मध्य मे इतिहासकार आता है । प्रख्यात दाशनिक 'हाउसमान' ने इस ओर ध्यान दिलाते हुये बताया कि - 'यथात्थ्य होना एक दायित्व है कोई गुण नहीं' । अपने इतिहास को इतिहासकार तथ्यपरक रखने का कार्य तो स्वय ही करेगा । यहा 'इतिहास को एक ऐसी आरी के रूप मे देखा गया है वस्तुत जिसके तमाम दात गायब है । इन गायब दातो का समायोजन इतिहासकार को करना होता है | अर्थात इतिहासकार अपने तथ्यों का समायोजन कर उन्हें आवाज देने का प्रयास करता है । उसके त्थ्य पवित्र है और इसमे वह कोई बदलाव नहीं कर सकता है । परन्तु तथ्यों का चयन करना इतिहासकार के लिये एक बड़ी समस्या हो जाती है | इस चयन की समस्या से निपटने के लिये इतिहासकार उन्हीं तत्वों को भा




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