भारतीय संस्कृति का उत्थान | Bhartiya Sanskriti Ka Utthan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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& ऐतिहासिक ओर राजनोतिक याजना लगभग पांच लाख वषं हुये, जब प्रथ्वी पर मानव-कोटि का जीवधारी दृष्टिगोचर हुआ । उनकी सानव कहना बहुत ठीक नहीं, क्योंकि वे आजकल के मानवों से बहुत कुछ भिन्न थे; वे प्रायः वन-सालनुषों से मिलते जुलते थे। निश्चय ही वे दो पेरों पर खड़े होते थे । उन्हीं से आजकल के मात्रवों का विकास हुआ है। उनसे पहले अथवा उनके पूरब ज, जो श्राणी थे. उनको मानव- केाटि में नहीं रखा जा सकता | मानव-केटि के इन प्राणियों ने सबसे अधिक महत्व-पूर्ण जो काय किया, वह था पत्थर के अख- -शद् बनाना । उनकी इस प्रगति से मानव-संस्कृति का आरम्भ होता है । उस समय से लेकर जब तक मानव धातुओं का प्रयोग नहीं कर सका था, प्रस्तर-युग कहते हैं । संस्कृति के विकास की दृष्टि से प्रस्तर-युग के दो भाग किये गये हैं--प्राचीन और नवान । संसार के विभिन्न देशों के तत्का- ज्ञीन अवशेषों को देखने से ज्ञात होता है कि प्राचीन प्रस्तर-युग में चीन का मानव आग का श्रयोग करना ज्ञानता था. योरप का मानव मस्त व्यक्तियों को श्रद्धापुवक गाड़ता था, उनके लिये समाधियाँ में मांस-भोजन भी रख देता था और व्यापार भी करता था, फंस का मानव धरातल से लगभग दो मील नीचे 'तक की चट्टानों पर गेंडों, बैलों और हरिणों का चित्र बनाता था । कुछ लोग तो चमड़े का वद्ध भी बना लेते थे। भारत में-भी तत्कालीन चित्र मिलते हैं। भारत में प्राचीन श्रस्तर युग के मानवों की संस्कृति का परिचय बहुत कुछ पत्थर के श्रस्ल-श्खो से लगता है, जिनको उन्होंने प्रधानतः शिकार करने के लिये भर वृत्ता से फल तोडने के




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