भारतीय शिक्षा तथा आधुनिक विचारधाराएँ | Indian Education And Modern Concepts
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
32 MB
कुल पष्ठ :
294
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
डॉ. विद्यावती ‘मालविका’ सागर नगर की एक ऐसी साहित्यकार हैं जिनका साहित्य-सृजन अनेक विधाओं, यथा- कहानी, एकांकी, नाटक एवं विविध विषयों पर शोध प्रबंध से ले कर कविता और गीत तक विस्तृत है। लेखन के साथ ही चित्रकारी के द्वारा भी उन्होंने अपनी मनोभिव्यक्ति प्रस्तुत की है। सन् 1928 की 13 मार्च को उज्जैन में जन्मीं डॉ. विद्यावती ‘मालविका’ ने अपने जीवन के लगभग 6 दशक बुन्देलखण्ड में व्यतीत किए हैं, जिसमें 30 वर्ष से अधिक समय से वे मकरोनिया, सागर में निवासरत हैं। डॉ. ‘मालविका’ को अपने पिता संत ठाकुर श्यामचरण सिंह एवं माता श्रीमती अमोला देवी से साहित्यिक संस्कार मिले। पिता संत श्यामचरण सिंह एक उत्कृष्ट साहित
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१४ १: ४ भारतीय शिक्षा तथा आधुनिक विचारधारा |
लाइ-प्फ्र भी है। इस लाड़-प्यार के कारण वे यह सहन नहीं कर सकती कि
उनके इस उत्तरदायित्व को कोई ओर वहन करे | इतना ही नहीं, वे ऐसा मानती
हैं कि उनसे अधिक अच्छी तरह अन्य कोई इस कार्य को कर नहीं सकता |
छठवाँ कारण पूर्व-प्राथमिक शिक्षा का महँगा होना है | प्राथमिक-शिक्षा से
भी अधिक खरचीली पूर्व-प्राथमिक शिक्षा अभी तक रही है। अतः इसे केवल
उच्च-वर्ग के बच्चों के योग्य ही समझा गया है। अब भी यदि इसे, पूर्ब-बुनियादी
के समान, सस्ता नहीं किया जायेगा क्तो भारत में मांटेसरी, किंडरगाटन आदि
विधियों का प्रचार देश के उच्च वर्ग तक ही सीमित रहेगा |
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पूवे-प्राथमिक शिक्चा-परसार के उपाय
इपर खस्ता बनाया जाये } सस्ता बनाने के छिए इसे मटिसरी या
च
किंडरगार्टन विधियों के पदचरणों पर चलाने की अपेक्षा पूर्व-बुनियादी
कै ठचि में ढाल जाये |
जनता को शिक्षित करके बालक के प्रथम पाँच या छः वर्षो के महत्त्व
को समझाया जाये |
गाँवों में तथा आस-पास के आवागमन के साधनों को सुधारकर गाँवों
ॐ जीवन को सरस, मधुर तथा उन्नत बनाया जाये | इससे पूर्व-
प्राथमिक शार्ओं को शिक्षिकाएँ गाँवों में रहना पसन्द करेगी |
* ঘুন-সাখজিক্ক शिक्षिकाओं को गाँवों में रहने के लिए. आवास आदि
की सुविधाएँ दी जायें | उनका वेतन तथा सेवा की शर्तें भी आकर्षक
बनाई जायें |
* स्वायत्त शासन संस्थाओं को बाल-मन्दिर खोलने के लिए प्रेरित
किया जाये |
* ম্বান্ত-নন্হিহী হী प्राथमिक शाला तथा गाँव के शिशु-कल्याण-कैन्द्र
से संलगन किया जाये। ये तीनों प्रायः एक ही जगह स्थापित होना
चाहिए । ऐसा करने से खर्च भी कम पड़ेगा |
* प्रशिक्षण के लिए शहरों की अपेक्षा गाँवों की पढ़ी-लिखी महिलाओं की
ओर अधिक ध्यान दिया जाये, जिससे वे जाकर अपने गाँवों में
बाल-मन्दिरों का कार्य कर सकें |
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