जीवन और शिक्षण | Jeevan Aur Shikchan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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राष्ट्रीय शिक्षकोंका दायित्व २१ श्रब तो देशसेवाशिलाषी महाशयका पारा गरम हो उठा और मुंहसे कुछ ऊटपटांग निकलनेको ही था कि ्रश्नकर्ता बीचमें ही बोल उठा- - शांति क्षमा तितिक्षा रखना सिखा सकेंगे ? ग्रब तो हद होगई । श्रागमें जंसे मिट्टीका तेल डाल दिया हो । यह संवाद खूब जोरसे भभकता लेकिन प्रदनकर्त्ताने तुरंत उसे पानी डालकर बुझा दिया-- मैं ग्रापकी बात समझा । श्राप लिखना-पढ़न भ्रादि सिखा सकेंगे श्रौर इसका भी जीवनमें थोड़ा-सा उपयोग है बिल्कुल न हो ऐसा नहीं है । खैर श्राप बुनाई सीखनेको तैयार हैं? ग्रब कोई नई चीज सीखनेका हौसला नहीं है प्रौर तिसपर बुनाईका काम तो मुझे भ्रानेका ही नहीं क्योंकि श्राजतक हाथकों ऐसी कोई श्रादत ही नहीं । माना इस कारण सीखनेमें कुछ ज्यादा वक्‍त लगेगा लेकिन इसमें न शझ्रानेकी क्या बात है ? मै तो समझता हूं नहीं ही श्रायेगा । पर मान लीजिए बड़ी मेहनतसे श्राया भी तो मुझे इसमें बड़ा झंझट मालूम होता है । इसलिए मुझसे यह नहीं होगा यही समझिए । डीक जैसे लिखना सिखानेको तैयार हैं वैसे खुद लिखनेका काम कर सकते है ? डा जरूर कर सकता हुं । लेकिन सिफं बैठे-बैठे लिखते रहनेका काम भी है झंझटी फिर भी उसके करने में कोई झापत्ति नहीं है । यह बातचीत यहीं समाप्त होगई । नतीजा इसका क्या हुआ यह जाननेकी हमें जरूरत नहीं । दिक्षकोंकी मनोबत्ति समझनेके लिए यह बातचीत काफी है । दिक्षण यानी-- किसी तरहकी भी जीवनोपयोगी क्रियादयीलतासे शून्य कोई नई कामकी चीज सीखने में स्वभावतः श्रसमर्थ हो गया क्रियाशीलतासे सदाके लिए उकताया हुआ सफं दिक्षण का घमंड रखनेवाला पुस्तकोंमें गड़ा हुआ श्रालसी जोव भ्ि हद नह ० रै




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