दूर्वा-दल | Durva-dal

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Durva-dal by सियारामशरण गुप्त - Siyaramsharan Gupt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दूर्वा-दुल सभी साथी मुदित हैं देख, तेरे, तुकी को हाय ! है दुर्दे व घेरे । नहीं तेरा श्रमी सुवसन्त आया; प्रथम ही हाय ! उसका अन्त आया ! श्रभी से खग गया श्रातप ॒दुखाने; कलेवर हाय ! तेरा यह सुखाने ! यदपि मध्यान्ह जीवन का निकट है, तद्पि तेरे छिए सन्ध्या प्रकट है ! हुआ क्‍यों हाय ! यह चिर दुःख-भोगी, द्यामय | कया दया इस पर न होगी ? ॐ वशाख १९७२ १२




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