पुण्य स्मृतियाँ | Punya Smritiya
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
185
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)७ प० गणेशशकर विद्यार्थी
हुआ । क्यों-ज्यों उनके गुर्णों का परिचय होता गया, स्पो-सयों उनका
मूल्य, उनके प्रति आदर ओर सम्मान मेरे हृदय मे अधिकाधिक
बढ़ता गया | ज्ञो बात पहले सुनता था, वह अब प्रत्यक्ष हो गईं ।
श्रताप' के उश्चकोटि का साप्ताहिक-पत्र होने का कारण उनके
त्याग के साथ-साथ संपादनकला की उनकी छुशजल्ञता भी थी । वह
बड़े सिद्धहस्त और कुशल्ल पत्रकार एवं संपादक थे | ऐसे तो उनमें
एक-से-एक श्रेष्ठ गुण थे, वे गुणों के आगर थे; पर संपादन-कल्ा
तो उनमें एक इंश्वर-अ्रदत्त गुण था। अगर कहा ज्ञाय कि वह हिदी-
संपादन-कत्ता के आचाय थे, तो कोई अतिशयाक्ति न हीगी।
लनके इस इृश्वर-प्रद्त गुश का परिचय उनके सन्चिकट रहने से
मिला | अकसर पन्न के प्रधान संपादक अग्रलेख जिम देने तक ही
छपना काम तमाम सम लेते हैं; पर श्रद्धेय विद्यार्थीजी में एसी
बात नहीं धी । अग्लेख ओर नोट तो वे लिखते ही थे; पर
साथ-ही-साथ प्रतापः में प्रकाशित होनवाली एक-एक बति पर
थे ध्यान रखते थे | कपोज होने के पहले थे एक-एक बात को देख
जेते थे और आबश्यक सुधार भी कर देते थे कामा श्रौर सेमी-
कोलन द्री गलती भी उनके लिए असहा थी। थे छोटी-से-छोटी
मलती भी नहीं देखना चाहते थे। वे किसी भी बात में कोई
सीज छूटी हुई पसंद नहीं करते थे ।
प्रताप! को थे जननलाधारण की चीज समस्ते थे; इसलिए
बे प्रतापः में सुबोध-से-सुत्राध और सरत्त-से-सरल भाषा परि-
मार्शित रूप में देना पसंद करते थे, जिससे साधारण-से-साथारश
पाठक भी उसे बखूबी समझ सके। उन्होंने अताप' का मुख्य उद्देश्य
जनता की सेवा, उसका कल्याण और हित बनाया था; इसलिए
भरताय भे वैज्ञानिक गूड़ घातें महीं, चरम् जनता के हित॑ और
कल्या की घातें रहती थीं। विद्यार्थीजी का ध्यान इस बात पर
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