पुण्य स्मृतियाँ | Punya Smritiya

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Punya Smritiya by प्रेमनारायण टंडन - Premnarayan tandan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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७ प० गणेशशकर विद्यार्थी हुआ । क्यों-ज्यों उनके गुर्णों का परिचय होता गया, स्पो-सयों उनका मूल्य, उनके प्रति आदर ओर सम्मान मेरे हृदय मे अधिकाधिक बढ़ता गया | ज्ञो बात पहले सुनता था, वह अब प्रत्यक्ष हो गईं । श्रताप' के उश्चकोटि का साप्ताहिक-पत्र होने का कारण उनके त्याग के साथ-साथ संपादनकला की उनकी छुशजल्ञता भी थी । वह बड़े सिद्धहस्त और कुशल्ल पत्रकार एवं संपादक थे | ऐसे तो उनमें एक-से-एक श्रेष्ठ गुण थे, वे गुणों के आगर थे; पर संपादन-कल्ा तो उनमें एक इंश्वर-अ्रदत्त गुण था। अगर कहा ज्ञाय कि वह हिदी- संपादन-कत्ता के आचाय थे, तो कोई अतिशयाक्ति न हीगी। लनके इस इृश्वर-प्रद्त गुश का परिचय उनके सन्चिकट रहने से मिला | अकसर पन्न के प्रधान संपादक अग्रलेख जिम देने तक ही छपना काम तमाम सम लेते हैं; पर श्रद्धेय विद्यार्थीजी में एसी बात नहीं धी । अग्लेख ओर नोट तो वे लिखते ही थे; पर साथ-ही-साथ प्रतापः में प्रकाशित होनवाली एक-एक बति पर थे ध्यान रखते थे | कपोज होने के पहले थे एक-एक बात को देख जेते थे और आबश्यक सुधार भी कर देते थे कामा श्रौर सेमी- कोलन द्री गलती भी उनके लिए असहा थी। थे छोटी-से-छोटी मलती भी नहीं देखना चाहते थे। वे किसी भी बात में कोई सीज छूटी हुई पसंद नहीं करते थे । प्रताप! को थे जननलाधारण की चीज समस्ते थे; इसलिए बे प्रतापः में सुबोध-से-सुत्राध और सरत्त-से-सरल भाषा परि- मार्शित रूप में देना पसंद करते थे, जिससे साधारण-से-साथारश पाठक भी उसे बखूबी समझ सके। उन्होंने अताप' का मुख्य उद्देश्य जनता की सेवा, उसका कल्याण और हित बनाया था; इसलिए भरताय भे वैज्ञानिक गूड़ घातें महीं, चरम्‌ जनता के हित॑ और कल्या की घातें रहती थीं। विद्यार्थीजी का ध्यान इस बात पर




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