रूपाम्बरा | Roopambara

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Roopambara by स्वदेश भारती -Swadesh Bharti

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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£ गुणवन्ती मौसी & आँख से भन्ये, नयनघुल वाटी उक्ति प्रायः हमरे दंनिम जीवन अ चरि. টা होती दिखाई देती दै। हमारी गुणवन्ती मौसी एसी नहीं हैं, बह वास्तव “~ त ग॒र्गों का सण्डार हैं। ग्॒णोंसे आप यह मतलब मत छगा लीजिए कि बह 7 बहुत बढ़ी लेखिका हैं. या किसी कला-केम्र की अध्यक्षा हैं। घढह चित्रकार या ” क्वियित्री भी नहीं हैं और यदि आज्ञा दें तो यह भी बतला दूँ कि वह संसद की » सदस्या भी नहीं हैं। फिर आप कहेंगे, जब वह यह “सब' नहीं तो उनकी चर्या झ्ललाम! आजकल तो उस मौसी, थुआ या बुआ की ननद की मौसी और “ उपस्रस्े भी निकट का सम्बन्ध स्थापित करना हो तो, आप यानी जिसमें हमे सम्मिलित हैं, अक्सर ऐसी मौसी की भतीजी कौ नानी से कोई न कोई सम्बन्ध বি छेते हैं और उन्हीं की चर्चा में हमें अतीव आनन्द मिलता दै । हम सोचते है, भरी सभा में, हल्के से, झठे या सच्चे रिश्ते का उल्लेख कर दँँगे तो बह बात सुखी लकड़ियोंड्ी आगकी तरह फेंछ जाएगी । क्षमा कीजिएगा लक्ष डियां तो आज के युग में फिर भी मइगी हैं, परन्तु ऐसी बातें तो केवल धीरे से दूसरे व्यक्ति জী विश्वासपाञ्र बताकर कान में फुसफुसा दी जाती हैं, और बिता दामों के सूघतः दी फेलने लगती हैं । हमारी मौसी, केबल इमारे मौसा श्री मुरलीधर जी की धर्मपन्नी हैं। श्री सुप्यीघर ने शायद जीवन भर में राम झूठ न बुलवाणे, सच्ची मुरली के दर्शन नहीं डिये होंगे। हां, बेसे तो नियमपूर्वक अपना माथा सुरली वाले के सामने मुकाते है। श्री मुरुठीधर जी की एक बड़ौ-सीं दूकान, पंजाब के एक बहुत ही छोटे से शहर में है। शहर का नाम बतला दिया--तो जानते हैं कया होगा ! ठीक बही होगा জিষন্ধী मुझे आशंका हे और जिसका दृत्तान्त में अभी ब्तढाने जा रही हूँ । पति की आभुषणों वाली दूकान में जो सोने का नया सेट” बवता है, चाहे वह मारह ] [ रुपाम्बरा. सप्रेल' ६५




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