द्विवेदी युग का हिंदी काव्य | Dwivedi Yug Ka Hindi Kabya
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
406
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)47 नौनाप है एन गम दे
काल-निणशंय
हर
सरस्वती श्रुत्िमहती न हीयताम! कालिदास के इस भारत-वावय का उद्घोष करती
हुई 'सरसवती' जनवरी सन् १९०० ई० में बड़े संकल्प के साथ जतता के सामने श्रकट हुई । उस
थम अंक में बं० महावीर प्रसाद द्विवेदी की दो रचनाएं क्रमश: 'नैपध चरित चर्चा और सुदर्शन'
तवा 'द्रौपदी वचत बाणावली' प्रकाशित हुई । इन दोतों रचनाओं से द्विवेदी जो की लेखनों की
शक्ति एवं उनके व्यक्तित्व की गरिमा का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है ।
१६०० ई० के सरस्वती के जून अंक में द्विवेदी जी ने 'हे कविते' शीषंक से तत्कालीन
तुकबन्दियों, समस्यापुर्तियों एवं नीरस पदावलियों के विरुद्ध यह अभिव्यक्ति की --
सुरम्य रूपे रस-राशि-रंजिते !
विचित्र वर्णाभरणे कहां गई ?
मगलौकिकानस्द विधायिनी महा
कबीन्ट्र-कास्ते ! कबिते ! अहों कहां ?* आदि |
ब्रजभाषा की टीपिटाई शैली से ऊबकर टिवेदीजी खड़ीबोली को गथे की भांति पद्य में
भी पूर्णतः स्थापित करना चाहते थे । इसके लिए उनके हृदय में एक अदम्य लालसा आौर बेचैनी
थी, जिसको उनकी उपयुक्त काव्य की निम्नलिखित पंक्तियों द्वारा आंका जा सकता है !
*मभी मिलेगा ब्रज मण्डछान्त का,
सुभुक्त भाषामय वस्त्र एक ही |
शरीर-संगी करके उसे सदा,
विराग होगा! लुझकों अवद्य ही ।
इसीलिए हे भव भूति-भाविते !
अभी यहां है कविते ! न शा, ते आ।'
इतना ही नहीं, उसी वर्ष जुलाई अंक में उन्होंने “कवि कर्तव्य' शीर्षक निधन के माध्यम
से बह शखनाद किया, जिसने कचेयों के शानस में एक हुलचल मचा दी । नई चेतना पैदा कर
दी | यह सुयोंग भी कितना अनूठा था कि ठीक दो व्षं बाद सनुन १९०३ ई०में ही ट्रिंवेदी भी
१. कालिदास सरस्क्ती माग १ मक १ जनवरों १९०० ई० पृष्ठ हू
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