एकांकी नाटक | Ekanki Natak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रो हे मिलने का पता श्रादि सभी कुछ क्णे-गोचर कर देने का साधन-मात्र है । एकांकी नाटक की कोई निश्चित श्रौर निजी टेकनीक न तो श्रभी तक बन पाई है श्र न बन सकती है । पात्रों के व्यक्ति्व का अथवा विकास भी वहाँ नहीं किया जा सकता 13 एकांकी का ध्येय सिर्फ मनोरंजक झ्थवा रथपूर्ण वार्तालाप है चस इतना ही। इससे ्रधिक कुछ नहीं ।४ एकांकी नाटक लिखना चहुत थ्ासान हैं । जो व्यक्ति मनोरंजक दंग से थोड़ी-सी बातचीत लिख सकता है वह एकांकी नाटक भी लिख सकता है । भारत में एकांकी नाटकों की लोकप्रियता कुछ श्रंश तक रेषियो के कारण से भी चढ़ रही है। साहित्य में एकांकी का स्थान चहुत नगणएय- सा हैं |९ २ दूसरे स्कूल के श्रंतर्गत हम उन समालोचकों को लेते हैं जो जैनेंद्र के समान एकांकी नाटक को साहित्य के वहुत-से रूपी में से एक रूप मानते हैं । इसकी स्थापना परिस्थितियों के कारण संभव हुई यह उनका मत है । एकॉंकी नाटक कोई ऐसी चीज़॒नहीं जिस पर विशेषांक निकाला जाय । एकॉंकी नाटक छुत्रिम है क्योंकि उसकी रचना स्टेज को प्यान में रखकर की जाती है। उनमें जो कोष्ठक लगते हैं वे तमाशा तक वन जाते हैं 16 विलायतों से नाटक श्रौर एकांकी नाटक भी १ चह्दी पप्ठ । रे वही पृष्ठ ८०९ | है मै. व । कह बह । है डे || दा दा ४ 2४ श्् । शक | ८ देखिये हंस में प्रकाशित जैनेंद्र का पत्र जो उन्होंने उपेंद्रनाथ को लिखा था । पृष्ठ ६६३ हस-चाणी 1




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